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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दूसरोंके हितार्थ सविनय अवज्ञा की थी। उन्हें उससे स्वयं कोई लाभ न था। हजारों लोगोंने स्वार्थ-भावसे सविनय अवज्ञा की, क्योंकि उन्हें गिरमिट-मुक्त पुरुषों, उनकी पत्नियों और उनकी वयस्क सन्तानोंपर लगे करके निराकरणकी आशा थी। यदि सत्याग्रही इस सिद्धान्तकी कार्यान्वितिको समझ लें तो जन-समूहकी सविनय अवज्ञामें इतना काफी है।

दक्षिण आफ्रिकामें दो-तीन हजार पुरुषों और कुछ स्त्रियोंके साथ निषिद्ध क्षेत्रमें प्रवेश करते हुए जहाँ मैं गिरफ्तार किया गया था,[१] वह प्रदेश प्रायः उजाड़ था। हमारे दलमें कई पठान और तगड़े लोग थे। हमारे आन्दोलनको दक्षिण आफ्रिकी सरकारसे योग्यताका यही सबसे बड़ा प्रमाणपत्र मिला था। वह जानती थी कि हम जितने कृत-संकल्प हैं उतने ही निरापद भी हैं। मुझे गिरफ्तार करनेवाले लोगोंके टुकड़े-टुकड़े कर डालना उस जन-समूदायके लिए बिलकुल आसान था किन्तु ऐसा करना उन लोगोंके लिए घोर भीरुताका काम होता, यहीं नहीं बल्कि उससे उनकी ही प्रतिज्ञा झूठी हो जाती और टूट जाती और इसका यह अर्थ होता कि स्वतन्त्रताका वह आन्दोलन छिन्न-भिन्न हो जाता और एक-एक हिन्दुस्तानीको दक्षिण आफ्रिकासे बलात् निष्कासित कर दिया जाता। परन्तु वे लोग साधारण अव्यवस्थित भीड़के लोगोंकी तरह नहीं थे। वे अनुशासित सैनिक थे और उनकी खूबी निहत्थे होनेके कारण और भी बढ़ गई थीं। मैं उनसे अलग कर दिया गया था, परन्तु वे तितर-बितर नहीं हुए और न वापस मुड़े। वे अपने गन्तव्य स्थानकी ओर तबतक बढ़ते चले गये जबतक उनमें से हर एकको गिरफ्तार करके जेलमें नहीं डाल दिया गया। जहाँतक मुझे ज्ञान है अनुशासन और अहिंसाका यह एक ऐसा उदाहरण है जिसका इतिहासमें कोई जोड़ नहीं। मुझे ऐसे संयमके बिना भारतमें जन-समूहकी सफल सविनय अवज्ञाकी कोई आशा नहीं बँधती।

हमें यह विचार अपने मनमें से निकाल देना चाहिए कि हम हर गिरफ्तारीपर बड़े-बड़े प्रदर्शन करके सरकारको डरा सकेंगे। इसके विपरीत हमें गिरफ्तारीको असहयोगीके जीवनकी सामान्य शर्त मानकर चलना होगा। क्योंकि हमें गिरफ्तारी और कारावासको वैसे ही अंगीकार करना पड़ेगा जैसे संग्राममें जानेवाला सैनिक मृत्युको अंगीकार करता है। हम सरकार के विरोधको गिरफ्तारीसे बचकर नहीं, बल्कि उसको अपनाकर समाप्त करनेकी आशा करते हैं, भले ही इसके लिए हमें यह दिखाना पड़े कि हम सामूहिक रूपसे गिरफ्तार होने और जेल जानेके लिए तैयार हैं और माना भी यह जाता है कि हम इसके लिए तैयार होंगे। तब सविनय अवज्ञाका निश्चित अर्थ होगा एक निहत्थे पुलिसके सिपाहीके सामने भी आत्मसमर्पण करनेकी इच्छा। हमारी विजय इसमें है कि हमें हजारोंकी संख्यामें उसी प्रकार जेल ले जाया जाये जैसे मेमने कसाईखानेमें ले जाये जाते हैं। यदि संसारके मेमने स्वेच्छासे कसाईखाने गये होते तो वे कबके कसाईकी छुरीसे बच गये होते। इसके अतिरिक्त सर्वथा निर-

  1. गांधीजी ६ नवम्बर, १९१३ को पामफोर्डके पास उस 'महान् कूच' में भारतीय स्त्री-पुरुषों और बच्चोंको लेकर ट्रान्सवालमें प्रवेश करते हुए गिरफ्तार किये गये थे। देखिए खण्ड १२।