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२३७. पत्र : महादेव देसाईको

अलीगढ़
५ अगस्त, १९२१

भाईश्री महादेव,

तुम्हारा पत्र मिला। तुम मुझसे मिले नहीं, इससे कोई हानि नहीं। मेरी शुभेच्छामें आशीर्वाद तो मिला ही हुआ था। तुम्हें वहाँ कोई कष्ट न होगा और कोई कठिनाई नहीं होगी। मथुरादास[१] और दुर्गाकी स्थिति तो मैं समझता हूँ। उन दोनोंसे मिलनेकी मेरी प्रबल इच्छा थी। किन्तु बम्बईमें यह कैसे हो सकता था? बम्बईने जो-कुछ किया है उसमें प्रयत्नकी तो कोई कमी नहीं रही न?

हम १० तारीखको तो मिलेंगे ही; इसलिए अधिक कुछ नहीं लिखता।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च :]

प्रभुदास[२]आ गया है। स्टोक्स भी साथ हैं।

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ११४१६) की फोटो-नकलसे।

 

२३८. भाषण : मुरादाबादकी सार्वजनिक सभामें[३]

६ अगस्त, १९२१

सज्जनो,

युक्त-प्रान्तमें सरकारकी ओरसे जगह-जगह जो अमन सभाएँ स्थापित की जा रही हैं, मेरी समझमें अबतक नहीं आया कि उनका उद्देश्य क्या है। यदि इनका उद्देश्य वास्तवमें अमन कायम रखना है, तो ये सभाएँ हमारे साथ मिलकर क्यों काम नहीं करतीं? हमारे असहयोग आन्दोलनका वास्तविक उद्देश्य भी तो अमन कायम रखते हुए अपने अभीष्ट स्वराज्यको प्राप्त करना है । जब दोनोंका अभिप्राय एक है तब फिर उक्त सभाओंके अलग अस्तित्वकी क्या आवश्यकता रह जाती है। इसको आप ही विचारकर स्थिर करें। किन्तु हाँ, यदि यह अमन सभाके नामसे लोगोंमें बदअमनी फैलाती हो, लोगोंको अनुचित तैश दिलाती हो और लोग झगड़ा-

  1. मथुरादास विक्रमजी (१८९४-१९५१); गांधीजीकी बहनके पौत्र और उनके अनुयायी।
  2. छगनलाल गांधीके पुत्र।
  3. मुरादाबादमें गांधीजीने महिला-मण्डल तथा महाराजा थियेटरमें आयोजित सभाओंमें भी भाषण दिये थे।