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नई प्रतिज्ञा

फसाद बरपा करनेको उद्यत होते हों, और ये सभाएँ अपने नामका दुरुपयोग करके कलंकित होती हों, तो मैं आपसे कहूँगा कि ऐसी अमन सभाओंको दूरसे ही नमस्कार कीजिए। मृगतृष्णाके पीछे मत दौड़िये, जिससे पीछे पछताना न पड़े। कहना मेरा काम है, इतनेपर भी जो सज्जन न समझें, वे स्वतन्त्र हैं। वे अपनी इच्छानुसार काम करें।

आगे गांधीजीने विदेशी वस्त्रोंका बहिष्कार तथा स्वदेशी पहननेपर जोर दिया और कहा :

यद्यपि खादी अभी मँहगे दामोंमें मिलेगी, तो भी मलमलके मुकाबले उसमें किफायत ही रहेगी, क्योंकि जहाँ एक वर्षमें मलमलके आप आठ कुरते फाड़ेंगे वहाँ खादीके चार कुरते भी मुश्किलसे फटेंगे। कई बरससे अनवरत खादी पहननेके कारण यह मेरा पक्का अनुभव है। यदि आप लोगोंने मेरे कथनानुसार सच्चे मनसे स्वदेशी वस्त्र अपनाया, चरखा काता, विदेशी कपड़ोंको शवपर पड़े वस्त्रकी नाई त्याग दिया तो दयामय जगदीश कभी हमारे प्रति अप्रसन्न न रह सकेंगे, शीघ्र ही उनका आसन चलित होगा और स्वराज्य प्राप्त करानेमें वे हमारे सहायक होंगे।

आज, १५-८-१९२१
 

२३९. नई प्रतिज्ञा

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी द्वारा बेजवाड़ामें की गई प्रतिज्ञा पूरी हुई कही जा सकती है। प्रतिज्ञामें एक करोड़ रुपया इकट्ठा किये जानेकी बात निश्चित की गई थी, ईश्वरने हमारी उस प्रतिज्ञाको पूरा किया और हिन्दुस्तानकी प्रतिष्ठाको बचा लिया। अब जो दूसरी प्रतिज्ञा ली गई है वह अपेक्षाकृत अधिक कठिन है। ऐसा ही होना चाहिए। हमें ३० सितम्बरसे पहले-पहल विदेशी कपड़ेका सर्वथा त्याग कर देना चाहिए।

इसमें गुजरातका कितना हिस्सा होगा, गुजरात के लिए इसका निश्चय करने जैसी कोई बात नहीं है। सबको विदेशी कपड़ेका पूर्ण बहिष्कार करना होगा। इसलिए इस काममें परस्पर एक-दूसरेसे ज्यादा अथवा कम करनेकी कोई बात नहीं है। विदेशी कपड़ेके आयातको रोकनेका कार्य तभी हो सकता है जब सभी उसका त्याग कर दें। अतएव इसमें गुजरातका योगदान यही है कि प्रत्येक गुजराती विदेशी कपड़ेका त्याग करे।

इस त्यागके लिए हमें गुजराती बोलनेवाले और गुजरातमें रहनेवाले प्रत्येक व्यक्तिके पास पहुँचना चाहिए और उसे प्रभावित करनेका प्रयत्न करना चाहिए। लोगोंको इतना समझाना भी कितना कठिन कार्य है इसका हम अन्दाज लगा सकते हैं। लेकिन इससे क्या हम हार मान लें? विदेशी कपड़ेका त्याग करना हमारे लिए क्या सचमुच बहुत भारी काम है? अपने देशकी अपेक्षा क्या हमें रेशमी और झीने