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पराजित करनवाला इस जगत्में कोई है ही नहीं। स्वयं आत्मा ही अपना मित्र और शत्रु दोनों है।

कराचीमें शान्तिभंग

कराचीमें स्वामी कृष्णानन्दको गिरफ्तार करके जेलमें ठूँस दिया गया। स्वामी कृष्णानन्द लोकप्रिय थे। उन्होंने मद्यनिषेधकी दिशामें अच्छा काम किया था। मुझे बताया गया है कि उनपर झूठा आरोप लगाया गया था। इसमें सन्देह नहीं कि यह सब लोगोंके रोष और दुःखका कारण था, लेकिन असहयोगने हमें अपने रोषका सदुपयोग करना सिखाया है। यदि लोगोंके दिलोंमें स्वामी कृष्णानन्दके प्रति सच्चा प्रम है तो उन्हें शराब छोड़ देनी चाहिए, शराबकी दुकानोंपर शान्तिपूर्वक धरना देना चाहिए, विदेशी कपड़ोंको जला देना चाहिए, चरखा और करघा चलाना चाहिए तथा खादीका उत्पादन करना चाहिए। ऐसा करके स्वराज्य प्राप्त करें और स्वामीको छुड़वायें अथवा स्वामीके समान कार्य करके जेल महलमें जा विराजें। लेकिन कुछ एक लोगोंने इसके विपरीत किया और रास्तेसे गुजरते हुए अंग्रेजोंपर पत्थर फेंके। उससे स्वामी तो नहीं छूटे अलबत्ता स्वराज्य कुछ दूर चला गया। स्वराज्य तो आज ही मिलना चाहिए लेकिन नहीं मिलता; क्योंकि हम अपने क्रोधको नहीं रोक पाते। स्वराज्य मिलनेकी सबसे बड़ी शर्तको हम भंग करें और स्वराज्यकी उम्मीद करें, यह कैसे हो सकता है? कराचीकी कांग्रेसको और खिलाफतके कार्यकर्त्ताओंको मेरी सलाह है कि अपराधियोंको ढूँढ निकालें और उनसे पश्चात्ताप करवायें। इस तरहके शान्तिभंगके कारण कानूनकी सविनय अवज्ञाको आरम्भ करनेकी बात भी दूर होती चली जाती है। या तो हममें मार-धाड़को रोकनेकी शक्ति आनी चाहिए अन्यथा उसे सरकार रोकेगी। मार-धाड़को रोकने के लिए जबतक हमें सरकारपर निर्भर रहना पड़ता है तबतक समाजका शान्तिप्रिय वर्ग स्वतन्त्रताकी कामना ही नहीं करेगा, यह बात एक अनुभवहीन व्यक्तिको भी समझ लेनी चाहिए। और जबतक आम जनतामें स्वतन्त्रताकी तीव्र भावना उत्पन्न नहीं होती तबतक स्वराज्य असम्भव है।

हिन्दू-मुसलमान

आतरसुम्बाके बनिये और मुसलमान छोटी-सी बातपर लड़ पड़े। वहाँ एक मुस्लिम महिलाका घर हिन्दुओंके मन्दिरके पास है। वह महिला बेचारी शान्तिके साथ अपने घरमें रहती थी। धीरे-धीरे मन्दिरके न्यासी बनियोंने उसकी जमीनपर कब्जा करना चाहा। महिला बेचारी कुछ खीज उठी; उसने कुछ कह दिया। इसपर बनिये क्रोधित हो उठे। उन्होंने उस महिलाको गालियाँ दीं और इस तरह उसका अपमान किया। महिलाने वहाँ रहनेवाले मुसलमानोंसे फरियाद की, मुसलमान खीज उठे। उन्होंने बनियोंको चुन-चुनकर मारा। श्री अब्बास तैयबजीको इसकी खबर लगी। उन्होंने श्री मोहनलाल पण्डयाको शान्ति स्थापित करनेके लिए भेजा। दोनों पक्षोंने उनकी बात सुनी और इस तरह झगड़ा शान्त हुआ। मुसलमानोंने जब बनियोंपर हमला किया तब उनमें अपना बचाव करनेकी शक्ति भी न थी इससे वे सब घरोंमें घुस गये। इस घटनाके बारेमें मैंने जैसा सुना ठीक वैसा ही लिखा है। लेकिन दोनों कौमोंके बीच