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सम्पादकके प्रश्नोंके उत्तर

दुर्व्यवहार हो रहा है वह दया-धर्म नहीं है, वह तो अत्याचार है। इस तरह आप उन बेचारोंको सुखी कीजिए और उनके दिलसे निकलनेवाली दुआ लीजिए।

और भी बहुत-सी बातें सुनी हैं। पर उन बातोंको मैं आज नहीं उखाड़ना चाहता। वे पुरानी बातें हैं। मैंने तो सिर्फ यही प्रार्थना करनेके लिए यह पत्र लिखा है कि आजकल जो शुद्ध प्राण वायु बह रहा है उसकी गतिको न रोकिए। मैंने प्रेम-भावसे जो-कुछ लिखा है आप समझिए और प्रेमपूर्वक पढ़कर मेरे विनम्र सुझावोंको कार्यरूपमें परिणत कीजिए; बस यही निवेदन है। ईश्वरसे प्रार्थना है कि वह आपको न्यायवृत्ति दे और काठियावाड़के राजा प्रजा नीति-मार्गपर चलते हुए सुखी रहें।

आपका सेवक,
मोहनदास करमचन्द गांधी

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १४-८-१९२१

 

२४४. सम्पादकके प्रश्नोंके उत्तर[१]

८ अगस्त, १९२१

'इंडियन डेली टेलीग्राफ' के सम्पादक श्री मैकेंजीने श्री गांधीको उत्तर देनेके लिए पाँच प्रश्न भेजे हैं :

(१) आपके विचारों और लॉर्ड रीडिंगके विचारोंमें जो अन्तर है वह समय बीतनेके साथ-साथ बढ़ेगा या कम होगा, इस सम्बन्धमें आपका क्या खयाल है?

(२) आप स्वराज्यको स्थापना कबतक करनेकी आशा करते हैं?

(३) क्या आप समझते हैं कि प्रधान मन्त्रीका कार्य पहलेकी अपेक्षा अब अधिक राक्षसी या दुष्टतापूर्ण है?

(४) आप अपने देशमें उत्पन्न और शिक्षित मन्त्रियोंको, जो सुधारोंके अन्तर्गत बनी परिषदोंके द्वारा भारतमें पूर्ण उत्तरदायी शासनकी स्थापनाका प्रयत्न कर रहे हैं, प्रोत्साहित क्यों नहीं करते?

(५) क्या आप जीवनमें विनोद-वृत्तिको आवश्यक समझते हैं?

श्री गांधीने निम्नलिखित उत्तर दिये हैं:

(१) यह अन्तर जितना कम होना सम्भव है उतना ही बढ़ना भी सम्भव है।

(२) मैं खुद अपने ऊपर यथासम्भव शीघ्र स्वराज्यकी स्थापनाका प्रयत्न कर रहा हूँ। मैं भारतमें स्वराज्यकी स्थापना नहीं कर सकता। किन्तु में निश्चय ही उससे इसी वर्षमें स्वराज्यकी स्थापना करनेकी अपेक्षा रखता हूँ।

  1. इसका मिलान १८-८-१९२१ के यंग इंडियामें प्रकाशित पाठसे कर लिया गया है।