पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करता हूँ। मुझे आपसे इस सेवाका बदला नहीं चाहिए। धर्मका बदलेके साथ सम्बन्ध नहीं है; इसका तो ईश्वरके साथ सम्बन्ध है। मुझे जनतासे वेतन नहीं चाहिए। वेतन और बदला मुझे ईश्वर देगा । हिन्दू धर्म तो सिखाता है कि व्यक्ति जो-कुछ भी करे उसे कृष्णार्पण करे तभी उसकी सेवा फलीभूत होती है। इसलिए आज आपने अन्त्यजोंको स्पर्श कर जो पुण्य कार्य किया है वह अगर मेरी सेवाका बदला चुकानेके रूपमें किया हो तो उससे मेरा और आपका भला नहीं होगा; वह शोभान्वित तभी होगा जब कि उसे आपने विवेकपूर्वक किया हो ।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, ५-५-१९२१

१६. भाषण : नवसारीमें

२१ अप्रैल, १९२१
 

बहनो और भाइयो,

नवसारी मैं पहली बार नहीं आया हूँ । सन् १९१५ में जब मैं भारत भ्रमण कर रहा था उस समय एक दिनके लिए मैं यहाँ आया था। लेकिन वह समय जुदा था और आजका समय जुदा है। दोनोंमें बहुत भेद है। आज तो नया युग है। इस युगमें हम जो कर रहे हैं उसका क्या परिणाम निकलेगा तथा संसार हमारी क्या परीक्षा लेगा सो तो ईश्वर जाने । हम चाहे जो सोचें लेकिन वह सोचा हुआ विचार सफल होगा या नहीं सो तो ईश्वरके हाथ है। इसीसे कहा जाता है कि मनुष्य चाहे जो सोचे, करनेवाला तो खुदा है।

मेरे जैसा व्यक्ति प्रजामें दिखाई देनेवाले उत्साहसे, प्रजाकी प्रतिज्ञासे भ्रमित होकर यह विश्वास रखता है कि एक वर्षके भीतर धर्मराज्यकी स्थापना होगी, स्वराज्यकी स्थापना होगी; लेकिन किसे खबर कि हम जो राज्य स्थापित करेंगे वह धर्मराज्य होगा या अधर्मराज्य ? हमारा स्वराज्य राक्षसी राज्य होगा या रामराज्य इसकी अभी किसे खबर है। लेकिन मेरी आत्मा तो गवाही देती है कि हमारी गति धर्मकी ओर है। हिसाब करते-करते ऐसा जवाब आता है कि पिछले पांच अथवा छः महीनोंमें जिस रफ्तारसे हमने काम किया है अगर उसी रफ्तारसे बाकीके छःमहीनोंमें काम करेंगे तो अवश्यमेव धर्मराज्यकी स्थापना कर सकेंगे ।

मुझे इस बातका अहसास है कि इस समय मैं ब्रिटिश राज्यकी सीमामें नहीं हूँ। मैं महाराजा गायकवाड़की सीमामें बैठकर भाषण दे रहा हूँ। लेकिन मैं जो कहन जा रहा हूँ वह यहाँ भी लागू है। मेरा कार्य ब्रिटिश और देशी दोनों राज्योंके लिए समान है। दोनों जगहोंपर धार्मिक भावना जाग्रत करना, दोनों जगहोंमें जो मैल हो उसे निकाल बाहर करना तो अभीष्ट है ही।