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भाषण: नवसारीमें

लेकिन ब्रिटिश सीमामें रहकर मुझे जो टीका करनी पड़ती है, जिन बातोंके कारण कितने ही कार्य करनेकी सलाह देनी पड़ती है, मैं जानता हूँ कि वे बातें यहाँ नहीं हैं। इसलिए मुझे जो कहना है सो सामान्य रूपसे कहूँगा ।

नवसारी आनेका मेरा खास उद्देश्य यह है कि मैं पारसियोंके इस गढ़में आकर पारसी बहनों और भाइयोंके दर्शन करूँ और उनसे दो शब्द कहूँ। नवसारी पारसियोंका बड़ा भारी गढ़ है। बम्बई पारसियोंका गढ़ है, लेकिन बम्बईको अकेले पारसियोंका ही नहीं कहा जा सकता । बम्बई तो अंग्रेजीमें जिसे "कॉस्मोपोलिटन सिटी" कहते हैं, वैसा शहर है । बम्बई जगन्नाथपुरी-जैसा है, यद्यपि जगन्नाथपुरी उसे तभी कहा जा सकता है जब वह जगन्नाथपुरीके समान पवित्र हो और मैं बम्बईको पवित्र माननेके लिए तैयार नहीं हूँ। पारसियोंका सच्चा धाम नवसारी ही है।

स्वर्गीय दादाभाई नौरोजीकी यह जन्मभूमि है। मैं उनके घर होकर आया हूँ । मेरे लिए तो यह तीर्थस्थान है। लेकिन इसके अलावा पारसी बहनों और भाइयोंके साथ मेरे कितने निकटके सम्बन्ध हैं, उसकी मैंने पारसियोंके प्रति अपने खुले पत्रमें चर्चा की है। उसमें मैंने अपने समस्त सुन्दर संस्मरणोंका जिक्र नहीं किया है। उनके लिए उसमें जगह ही न थी । मेरे वे संस्मरण सुन्दर हैं और उनके साथ मेरे सम्बन्ध निकटके हैं। मैं उनके कर्जसे दबा हूँ- - उनका ऋणी हूँ। मैंने अपने इस कर्जको चुकानेके लिए यह पत्र लिखा था। पारसियोंने हिन्दुस्तानमें, विलायतमें, दक्षिण आफ्रिकामें,जंजीबार और अदनमें मेरे प्रति जो प्रेम-भाव दिखाया है उसे मैं भुला नहीं सकता। स्वयं अपने बारेमें इतना तो मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि मैं एहसान फरामोश नहीं हूँ। मुझपर उन्होंने जो उपकार किया है उसकी मैं कीमत आँक सकता हूँ और इसी कारण आज जो संघर्ष चालू है उससे पारसियोंका अलग अथवा तटस्थ रहना मुझे दुःख देता है ।

मुझे पारसियोंके प्रति प्रेम है, उनकी शक्तिके प्रति मेरे मनमें सम्मान है, उनकी बुद्धिका मुझे अनुभव है, उनकी कार्यदक्षताका मुझे ज्ञान है। इसलिए मैं मानता हूँ कि इस आन्दोलनसे वे अलग नहीं रह सकते। पारसी इससे अलग रहें अथवा असहयोगी न बनें तो मुझे दुःख जरूर होगा ।

पारसियोंमें वणिक-वृत्ति है। वे सारी दुनियाके व्यापारियोंसे व्यापारमें कम नहीं उतरते। पारसी कौम बहुत साहसी है। अस्सी हजार अथवा एक लाख व्यक्तियोंकी आपकी कौमकी कीर्ति आपके साहसके कारण ही सारी दुनियामें फैली हुई है । आप जहाँ-जहाँ गये हैं वहाँ-वहाँ आपने अपनी बुद्धि और शक्तिका चमत्कार दिखाया है। उदारतामें पारसी कौमका कोई मुकाबला नहीं कर सकता । पारसी कौमने जगत्‌की भलाईके लिए जितना धन दानमें दिया है उतना किसी दूसरी कौमने नहीं दिया। श्री एन्ड्र्यू लैंगने समस्त संसारकी कौमोंकी दानशीलताके आँकड़े पेश करके बता दिया है कि आबादीके

१. १८२५-१९१७; ब्रिटिश संसदमें निर्वाचित होनेवाले प्रथम भारतीय सदस्य; १८८६, १८९३ और १९०६ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष ।

२. देखिए खण्ड १९, पृष्ठ ४७५-७७ ।