पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 ५३२ सम्पूर्ण गाधी वाङ्मय करना है तो स्वयसेवकोको सम्पूर्ण बनना चाहिए। उनमे शोर बन्द करनेकी, वरण- स्पर्श रोकनेकी और लोगोतक अपनी आवाज पहुंचानेकी शक्ति होनी ही चाहिए। वैसा न हो तो दिक्कतके समय स्वयसेवक सेवा करनेमे असमर्थ सिद्ध होगे। अतएव हमें अपनी लड़ाईमें स्वयसेवकोकी तालीमको एक महत्त्वपूर्ण अंग मानना चाहिए। बांच-पड़ताल हम स्वदेशीका पालन करते है अथवा नही इसकी जांच कैसे हो सकेगी, लोग प्रायः यह बात मुझसे पूछते रहते है। यह जांच दो प्रकारसे की जा सकती है। इस समय तो बाजारोमे हमे अपने देशके स्त्री-पुरुषोके शरीरपर विदेशी कपड़ोके अलावा कदाचित् ही कोई और वस्त्र दिखाई देता है। हमे तोरणो और सजावट आदिमे भी मैनचेस्टरका कपड़ा ही चाहिए। हमारे अडे और चपरासके परतले आदि भी विदेशी कपड़ेके ही होते है। मन्दिरोमे, मस्जिदोमे यही देखनेमे आता है। इसके बदले जब हम सब स्थानोपर खादीका उपयोग करने लगेगे तब हम समझेगे कि खादीका जमाना आया। इससे भी पक्का सबूत हमारी कपडेकी दुकाने और बुनकरोको बस्ती हमे देगी। यदि हमारी दुकानोमे विदेशी कपड़ा आसानीसे न मिल सके और सिर्फ खादी ही नजर आये तथा बुनकरोके करषोपर विदेशी सूत न हो तो हमे समझ जाना चाहिए कि अब स्वदेशीका युग आ गया है। यदि विदेशी माल मांगनेवाला कोई होगा ही नही तो विदेशी मालकी दुकाने कहाँसे होगी? इस महत्त्वपूर्ण उपलब्धिको हिन्दू-मुसलमान दोनो समक्ष जाये तभी सफलता मिलेगी। करोडो हिन्दू अगर बारीक मलमलके शौकको न छोडे तो अकेले मुसलमान क्या कर सकते है ? करोडो मुसलमान बैसा न करे तो हिन्दू अकेले क्या कर सकते है। अपने कियका फल हमने जनताके अन्य अगोकी उपेक्षा की, इसीसे अब हमपर मुश्किल आई है। मै जहाँ कही जाता हूँ वही मुझे व्यापारियो तथा बुनकरोम सहयोगका अभाव दिखाई देता है। व्यापारी तो कुछ हदतक प्रवृत्तिमें शामिल हो गये है, लेकिन बुनकरोमे तो हमने अभीतक प्रवेश ही नहीं किया। अतएव हमे अब उन्हे शिक्षा देनी चाहिए। जबतक हम उन्हें शिक्षित नही करते तबतक हमारी दिक्कते बढ़ती ही चली जायेगी। व्यापारी विदेशी माल लाते रहेगे और बुनकर विदेशी सूत कातते रहेगे और हाथकते सूतको छुएंगे भी नही। फिर हमारा क्या हाल होगा? काग्रेस कमेटीके प्रत्येक अधि- कारीको अब बुनकरो और व्यापारियोसे मिलना चाहिए, उन्हे सदस्य बनाना चाहिए और उन्हे उनके धन्धेमे उचित परिवर्तन करनेके लिए समझाना चाहिए। मुरादाबादमे ऐसा प्रयत्न सफल हुआ। वहॉकी कमेटीने कार्य करनेवालो और व्यापारियो, दोनोको इकट्ठा किया था। उन्होने बात समझने और अपनी गुत्थियोको सुलझानेके बाद खुशी- खुशी विदेशी कपड़ा न खरीदनेकी प्रतिज्ञा की। मै जहाँ-जहाँ जाता हूँ वहां-वहाँ गुजरातियोकी एक अच्छी सख्या दिखाई देती है। उनमें से अनेक तो सौ-सौ, दो-दो सौ वर्षोसे अमुक-अमुक प्रान्तोमें रहते आये है। वे लोग अब सभी स्थानोपर बड़ी स्पर्धासे काम कर रहे है और जहाँ रहते है वहाँके लोगोसे मिल-जुलकर रहते हैं। किसी-किसी