पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५७७

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२७०. द्वेषपूर्ण अभियोग संयुक्त प्रान्तके दौरे में दमनकी अजीब कहानियाँ मेरे सुनने में आई। अभी तो मैं केवल उन दो अभियोगोंकी चर्चा करना चाहता हूँ जिनको द्वेषपूर्ण कहने में मुझे कोई हिचक नहीं है। सीतापुरके जमींदार मोहनसिंह दरमल और भूतपूर्व तहसीलदार शम्भुनाथको सम्मन भेजे गये हैं और पूछा गया है कि उनसे जमानत क्यों न माँगी जाये। उनका अपराध सम्मनमें यह बताया गया है : चूँकि रामगढ़के पटवारीकी सूचनासे यह प्रकट होता है कि १. ठा० मोहनसिंह रामगढ़वाले २. बा० शम्भुनाथ, भूतपूर्व नायब तहसीलदार, जो अब भुवाली और भुन्या- घरमें हैं, सरकारके विरुद्ध आन्दोलनमें भाग ले रहे है और तिलक स्वराज्य- कोषकी हुण्डियाँ बेच रहे हैं। चूंकि कानून द्वारा संस्थापित सरकारके विरुद्ध ऐसे आन्दोलनसे आम लोगोंके अमन चैनमें विघ्न पड़ने और शान्तिके भंग होनेका अन्देशा है, अतः इन लोगोंसे स्पष्टीकरण मांगा जाता है कि उनमें से हर एकसे एक साल तक शान्ति कायम रखने के लिए १,००० रुपयेके मुचलके और ५००-५०० रुपयेकी दो जमानतें क्यों न ली जानी चाहिए। ऊपरी तौरपर सम्मनसे कोई अपराध प्रकट नहीं होता। परन्तु पटवारीका बयान पढ़कर स्थितिकी दुःखजनक हास्यास्पदता बढ़ जाती है। इसमें कहा गया है कि अभि- युक्तने पण्डित मोतीलाल नेहरूको चन्दा दिया है और उसे रामगढ़-जैसी हवाखोरी- की जगहमें पण्डित ( मोतीलाल) नेहरू-जैसे पक्के असहयोगीके साथ देखा गया है। यह सच है कि न्यायाधीशमें ऐसे प्रसंगोचित तथ्यका जिक्र करनेका साहस नहीं है, परन्तु जैसा कि दूसरे अभियुक्तके बयानसे सुस्पष्ट हो जाता है, उसका एकमात्र अपराध पण्डितजीके साथ रहना और उनकी सेवा करना ही है। अभियुक्त अपने जिलेका एक प्रसिद्ध व्यक्ति है। यह भी सभी जानते हैं कि वह क्षयरोगसे पीड़ित है और अब उसका रोग चरम अवस्थामें है। उसका दाहिना फेफड़ा समाप्त-प्रायः है। उसका बायाँ फेफड़ा और उसकी आँतें भी बहुत खराब हैं। उसने महीनोंसे किसी राजनैतिक काममें भाग नहीं लिया है। उसने भाषण भी नहीं दिये हैं। वह रामगढ़में पण्डितजीकी तरह स्वास्थ्य सुधार रहा है। अतः न्यायाधीशके लिए उसे गिरफ्तार करनेका या गिरफ्तारीके बाद उसपर मुकदमा चालू रखनेका कोई कारण ही नहीं है। तथ्य यह है कि न्याया- धीश असहयोगसे तनिक भी सम्बद्ध लोगोंको स्पष्टतः आतंकित करना चाहता है। इसमें वे लोग भी आ जाते हैं जो गाँवमें चन्दा इकट्ठा करते हैं या असहयोगियोंकी सहायता करते हैं। कहा जा सकता है कि ऐसी घटनाएँ वास्तवमें अपवाद-स्वरूप हैं और उनके महत्त्वकी अतिरंजनाकी कोई जरूरत नहीं। मैं इस सिद्धान्तको मानने में असमर्थ हूँ। इस दृष्टान्तमें न्यायाधीशने सम्भवतः एक मौलिक तरीका अपनाया है, परन्तु २०-३५ Gandhi Heritage Portall