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२३. सन्देश : 'बॉम्बे क्रॉनिकल' को'

मैं श्री हॉनिमैनके बारेमें कह सकता हूँ कि मैंने उन्हें जितना अधिक जाना, उनके प्रति मेरा प्रेम उतना ही अधिक बढ़ता गया। श्री हॉनिमैनने जितनी निर्भयता और दृढ़ विश्वासके साथ पत्रकारिता की और अपनी प्रतिभाके जरिये भारतकी सेवा की उतनी इने-गिने अंग्रेजोंने ही की है। और यह मैं बावजूद इस बातके कह सकता हूँ कि मैंने प्रायः उनकी सख्त भाषा और खरी-खोटी सुनानेकी आदतके बारेमें, जिसमें उन्हें महारत हासिल थी, नापसन्दगी जाहिर की है।

मो० क० गांधी
 

[ अंग्रेजीसे ]

बॉम्बे क्रॉनिकल, २६-४-१९२१

२४. टिप्पणियाँ

मूलशीमें सत्याग्रह

मेरी सहानुभूति मूलशीके' गरीब लोगोंके साथ है। मैं चाहता हूँ टाटा-जैसे बड़े घरानेके लोग अपने कानूनी अधिकारोंपर अड़नेकी बजाय खुद इन लोगोंके साथ बातचीत करें और इनसे सलाह-मशविरा करके इनके लिए जो-कुछ कर सकते हों करें। भू-अधिग्रहण अधिनियमोंका मुझे भी थोड़ा अनुभव है। मैं इस तरहके लगभग ८० मुकदमोंकी पैरवी कर चुका हूँ। किन्तु वहाँ भूमिके अधिग्रहणका कारण औद्योगिक विकास नहीं बल्कि गन्दगी था। मैं जानता हूँ कि जिन लोगोंकी जमीनें ली गईं उनको जितना चाहिए था ठीक उतना ही, समुचित मुआवजा नहीं मिला है। यदि एक भी गरीब आदमीको कुछ भी नुकसान उठाना पड़े तो फिर उस टाटा-योजनाका क्या मूल्य रह जायेगा जो भारतके लिए इतनी कल्याणकारी बतलाई जाती है ? कहने-को तो यह भी कहा जा सकता है कि अगर अघ-पेट रहनेवाले तीन करोड़ स्त्री-पुरुषों और लाखों भूखे-नंगे इन्सानोंको गोली मार दी जाये और उनकी लाशोंको खादके काममें लिया जाये या उनकी हड्डियोंसे चाकुओंके बेंट बना डाले जायें तो रोग और निर्धनताकी समस्या आसानीसे हल की जा सकती है और बाकी बचे हुए लोग बड़े

१. यह सन्देश बॉम्बे क्रॉनिकल के सम्पादक बेंजामिन गाइ होर्निमैनके देश-निकालेको दूसरी वार्षिकीके अवसरपर प्रकाशित किया गया था । श्री हॉर्निमैनको २६ अप्रैल, १९१९ को बिना मुकदमा चलाये निर्वासित किया गया था। देखिए खण्ड १५, पृष्ठ २६३-६४ ।

२. मूलशी गांवके किसानोंने अपनी शिकायतें दूर न होनेपर सत्याग्रह करनेकी धमकी दी थी । देखिए " भाषण : महाराष्ट्र प्रान्तीय सम्मेलन, वसईमें ", ७-५-१९२१ ।