पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/१०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कारणोंकी खोज नहीं करनी चाहिए। हमने अपने लिए एक कठिन आदर्श चुना है और हमें उसपर टिकना चाहिए। हमने प्रतिज्ञा की है कि चाहे कितनी भी उत्तेजक परिस्थितियाँ क्यों न हों हम किसी भी प्रकारकी हिंसा नहीं करेंगे। हम तो यह मानते हैं कि उत्तेजना दिलानेवाली गंभीरतम परिस्थितियोंमें हमारी अन्तिम परीक्षा होगी। इसलिए कहना पड़ता है कि इस्लाम तथा स्वराज्यके पवित्र कार्यको गुमराह मोपलाओंने स्पष्ट ही बहुत हानि पहुँचाई है।

हम कह सकते हैं और अगर हमने ईमानदारीसे वैसा प्रयास किया हो तो -- हमें कहना भी चाहिए कि अपने प्रयासोंके बावजूद हम अपने समाजके उपद्रवी तत्त्वोंको नियंत्रित या अनुशासित नहीं रख पाये। लोगोंको स्वेच्छासे स्वीकृत अहिंसा और असहयोगके सहज नियंत्रण अथवा सरकारके कठोर शासनके बीच किसी एकको चुनना है। अब सरकार अपनी बढ़ी चढ़ी और प्रशिक्षित हिंसाके द्वारा हिंसाकी शक्तियोंका प्रतिकार कर सकने की अपनी शक्ति तथा सामर्थ्यका प्रदर्शन कर रही है। यदि हम यह नहीं दिखा पाते कि हमारा जनतापर अधिक प्रभाव है तो सरकारकी इस कार्रवाईका कोई जवाब नहीं दे सकते। हमें स्वयं साफ-साफ देख सकना चाहिए और लोगोंको दिखा सकना चाहिए कि सरकार के खिलाफ हमारा शक्ति प्रदर्शन उस बालकके प्रयत्नके समान है जो एक तिनकेसे नदीके प्रवाहको रोकना चाहता है।

मुझे यह जानकर दुःख होता है कि हमारे लोगोंमें अभीतक यह स्थिर विश्वास पैदा नहीं हुआ है कि केवल पूर्ण अहिंसा के माध्यमसे ही स्वराज्य जल्दी मिल सकता है। हमें यह भी नहीं दिखता कि हिंसा के कारण हिन्दू-मुस्लिम एकता समाप्त हो जायेगी। हिन्दू और मुसलमान एक-दूसरेका विश्वास नहीं करते उसका कारण इसके सिवा और क्या है कि उन्हें -- हिन्दुओंको मुसलमानोंकी ओरसे और मुसलमानोंको हिन्दुओंकी ओर से -- हिंसाका भय है। और दोनोंमें सच्ची हार्दिक एकताके बिना स्वराज्यकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।

स्वराज्य-प्राप्तिमें जो चीज बाधक है वह हिंसाका भय नहीं तो और क्या है ? उसके लिए हमें जो कदम उठाना है उन्हें हम तुरन्त क्यों नहीं उठाते ? क्या उसका कारण यही नहीं है कि हमें हिंसा भड़क उठनेका भय है ? अगर हमें यह विश्वास हो जाये कि हम दृढ़तापूर्वक अहिंसापर डटे रहेंगे तो क्या हम सरकारको आज ही यह चेतावनी नहीं दे सकते कि या तो वह हमारे साथ सहयोग करे या यहाँसे निकल जाये ? माडरेट लोग हमारे आन्दोलनसे दूर रहना चाहते हैं उसका कारण क्या यही नहीं है कि उन्हें अहिंसाका वातावरण पैदा कर सकनेकी हमारी क्षमतापर विश्वास नहीं है ? मोपलाओंके इस उत्पातसे उनके इस डरको पोषण मिलेगा।

तब हमें क्या करना चाहिए ? बेशक हमें निराश नहीं होना है। अपने साधनमें, अहिंसा में हमारा विश्वास और प्रबल हो जाना चाहिए और इस प्रबलतर विश्वासको लेकर हमें अधिक उत्साहसे आगे बढ़ना चाहिए, अधिक आशासे अपना कदम उठाना चाहिए। हमें अपने देशवासियोंको, नादानसे-नादान देशवासीको, यह समझाना है कि खिलाफत सम्बन्धी अन्यायके निराकरण तथा स्वराज्यकी प्राप्तिके लिए अहिंसा ही एकमात्र और अनिवार्य उपाय है और अपने इस प्रयत्नमें हमें लगातार जुटे ही रहना चाहिए।