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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पूरी करने के लिए परमात्मा समय-समयपर पृथ्वीपर अपने विशेष दूत भेजता रहता है। इनमें परमात्माका तेज या प्रताप विशेष रूपसे दृष्टिगोचर होता है। इन्हींको हमारे शास्त्रों में अवतारका नाम दिया गया है। परन्तु प्रस्तुत परिस्थितिमें यह बात लागू नहीं है। मेरे विचारमें आज भारतकी स्थिति ऐसी है कि यहाँ अभी किसी भी अवतारका अवतरित होना सम्भव नहीं। किसी अवतारके अवतरित होनेकी कल्पनातक करनेसे पहले, हमें सही रास्ते पर चलते हुए कठोर परिश्रम करना चाहिए तथा इस तरह अपनेको तथा अपने देशको पवित्र बनाना चाहिए। और आजके भारतको जो वस्तु चाहिए वह वीरपूजा नहीं अपितु सेवा है। उत्तरोत्तर अधिक संख्यामें हमें देशसेवक चाहिए। जो स्वराज्य हम चाहते हैं उसका अर्थ वर्तमान राजाको खत्म करके किसी दूसरे व्यक्तिके शासनकी स्थापना करना नहीं है -- चाहे वह गांधी हो या मेरे साथी मौलाना शौकत अली या मौलाना मोहम्मद अली। हम जानते हैं कि पिछले जमाने में चाहे जो हुआ हो, परन्तु भारत अब इतना जाग चुका है कि अब इन बातोंकी पुनरावृत्ति होनेवाली नहीं है। हम यह नहीं चाहते कि एक आदमी तो शासन करे और बाकी सब उसके दास बने रहें। हम काफी दासता भोग चुके हैं। हम जो चाहते हैं वह यह है कि अपनी निष्ठाके द्वारा लोगोंमें देशसेवाकी सजीव भावना पैदा करें। हम चाहते हैं कि प्रत्येक भारतीय गांधी बने, मौलाना शौकत अली बने, मौलादा मुहम्मद अली बने और तब हमारी कल्पनाका स्वराज्य हमें मिल जायेगा -- अपने सम्पूर्ण रूपमें। इसलिए मेरा आपसे निवेदन है कि आप चरण छूकर या जय घोष करके अथवा अनावश्यक नारे लगाकर हमारे काम में बाधा न डालें। यह असम्भव है कि भीड़का प्रत्येक व्यक्ति मुझे छू सके। परन्तु जब वे लोग जो मेरे निकट हैं मेरे पैरोंपर झुकना आरम्भ कर देते हैं तो भीड़ भी ऐसा ही करनेके लिए लालायित हो जाती है। इससे अकथनीय गड़बड़ी मच जाती है। इसलिए मेरे पास खड़े लोगोंको मेरे पैर कदापि नहीं छूना चाहिए। उन्हें तो मेरा आदर करनेके अभिप्रायसे मेरे आगे झुकना भी नहीं चाहिए। यही नहीं कि मुझे ऐसी बातें पसन्द नहीं, बल्कि ऐसा करनेसे मुझे काफी चोट पहुँचनेकी सम्भावना भी रहती है। मैं चाहता हूँ कि देश पंजाब एक्सप्रेसकी गतिसे भी अधिक तेज रफ्तारसे चले। हमें स्वराज्य इसी वर्ष लेना है ताकि हम आगामी दिसम्बर तक उसकी खुशियाँ मना सकें। मैं एक बार फिर आपसे सविनय प्रार्थना करता हूँ कि आप ऐसा कोई भी काम न करें जिससे हमारे काममें रुकावट पैदा हो, क्योंकि इससे रुकावटके प्रमाण में देशकी हानि ही होती है, और कुछ नहीं।

अब मैं उस सवालपर आता हूँ जिसके लिए हम लोग यहाँ आये हुए हैं। ज्यों ही मैं यहाँ पहुँचा मैंने लोगोंसे दरयापत किया कि यहाँके हिन्दुओं और मुसलमानोंमें अनबन तो नहीं है। और जब मैंने यह सुना कि ससरामके हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच जरा भी मनोमालिन्य नहीं है, मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। परन्तु मुझे बताया गया है कि इस नगरके लोग कांग्रेसके कार्यके प्रति दिलचस्पी नहीं रखते। यहाँकी कांग्रेस कमेटी तथा खिलाफत समिति, दोनों ही शिथिल हैं। इन दोनोंसे मेरा निवेदन यही है कि वे अपने-अपने कामोंमें ज्यादा दिलचस्पी लें। मैं अन्य अनेक बातोंके बारेमें भी पूछताछ करनेवाला था, परन्तु मैं इतना थका हुआ था कि ऐसा न कर सका। गो-रक्षा के सम्बन्धमें मेरा