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गो-रक्षाका उपाय

विचार तो यह है कि गायकी रक्षा करना हिन्दुओंका धर्म है। धार्मिक विश्वासोंमें तथा धार्मिक एवं सामाजिक रीति-रिवाजोंमें हिन्दुओंमें, आपसमें ही, बहुत अन्तर है, परन्तु गोरक्षा के विषयमें सब हिन्दू एकमत हैं। मैं तो यहाँतक कहनेको तैयार हूँ कि गो-रक्षा हिन्दू धर्मकी एक केन्द्रीय और सर्वमान्य वस्तु है; यह एक ऐसी वस्तु है जो उसे दुनिया के दूसरे धर्मोसे अलग करती है। भारतवर्ष में गो-रक्षाकी बहुत बड़ी आवश्यकता है। लोग उसका दूध पीते हैं इतना ही नहीं, बल्कि उसकी नर सन्तान -- - बैल -- से हम खेत जोतनेका काम लेते हैं। हिन्दू लोग गायके प्रति उतनी ही श्रद्धा रखते हैं जितनी ब्राह्मण के प्रति। परन्तु भारतके बाहर गायके प्रति ऐसी भावना नहीं है। इसीलिए हमारे मुसलमान भाइयोंके मजहबमें गो-वध निषिद्ध नहीं माना गया है। और अगर हमारा कोई मुसलमान भाई किसी दिन -- जैसे ईदवाले दिन -- गो-वध करता है तो कोई हिन्दू उसे मारने के लिए हाथ कैसे उठा सकता है ? क्या शास्त्रोंमें यह लिखा है कि गायको बचाने के उद्देश्यसे किसी मनुष्यके प्राण लिये जा सकते हैं ? सच पूछिए तो शास्त्र ऐसा कोई आदेश नहीं देते। बल्कि ऐसा करना उनकी आज्ञाके विपरीत है। अंग्रेज लोग गोमांस खाते हैं परन्तु इस बातको लेकर कोई भी हिन्दू किसी अंग्रेजपर हाथ नहीं उठाता और न कोई हिन्दू भारतमें रहनेवाले अंग्रेजोंके लिए आवश्यक गोमांसकी पूर्ति के लिए कसाईखाने ले जाई जानेवाली लाखों गायोंको ही वहाँ पहुँचनेसे रोकता है। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि गायके प्राणोंकी रक्षा करनेके लिए आप अपने प्राण न्योछावर कर सकते हैं, दूसरेके प्राण ले नहीं सकते और न आप उसके प्रति अपने मनमें रोष ला सकते हैं। मेरे भाई मौलाना मुहम्मद अलीने आज दिये गये अपने भाषणोंमें से एकमें जो बात कही उसे मैं बिलकुल ठीक मानता हूँ। उनका कथन है कि भारतमें जो गो-वध हो रहा है उसके दोषका तीन-चौथाई भाग हिन्दुओंके हिस्सेमें आता है और मुसलमानोंके हिस्से में केवल एक चौथाई भाग। इसका कारण यह है कि जिन गायों का वध किया जाता है वे हिन्दुओंसे ही प्राप्त की जाती हैं। मैंने बम्बई में जहाजोंपर लादी गई हजारों गायोंको कलके वास्ते विदेशोंमें भेजा जाते देखा है। हिन्दू ही गायोंकी बिक्री करते हैं, न कि मुसलमान लोग। मेरे भाईने जो यह सुझाव दिया है कि गायका कोई कृत्रिम मूल्य -- जैसे सौ रुपये फी गाय -- रख दिया जाये तो गोवध स्वतः कम हो जायेगा, मुझे बहुत व्यावहारिक लगा है। सब-कुछ हम हिन्दुओंपर ही निर्भर करता है। बम्बई में तिलक स्वराज्य-कोषके लिए भेंट की गई एक गायकी कीमत पाँच सौ रुपये आई और दूसरी उससे भी ऊँचे मूल्यपर बिकी। अगर खरीदनेवाले तथा बेचनेवाले दोनोंकी श्रद्धाको जगाया जाये तो यह सब काम बिलकुल सुगम और व्यावहारिक हो जायेगा। इसलिए हिन्दुओंसे मेरा यही निवेदन है कि यदि आप लोग वास्तवमें गो-माताके प्राण बचाना चाहते हैं तो मुसलमान भाइयोंसे झगड़ा मत कीजिए बल्कि उनके साथ शान्तिपूर्वक रहिए। उनको किसी बात के लिए विवश मत कीजिए। उनके इस संकट कालमें, बदलेकी इच्छा किये बिना उनकी सेवा सच्चे दिलसे कीजिए। मेरी नजरोंमें मुसलमानोंकी खिलाफतकी समस्या उतना ही महत्त्व रखती है जितना महत्त्व हिन्दुओंके लिए गो-रक्षाका प्रश्न रखता है। मेरा यह पक्का