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३३. भाषण : हरीश पार्क, कलकत्तामें

८ सितम्बर, १९२१

श्री गांधीने कहा कि कुछ महीने पहले जब में तिलक स्वराज्य कोषके लिए चन्दा करने कलकत्ता आया था तब मैंने कहा था कि अपेक्षित रकम पिछले ३० जूनसे पहले इकट्ठी हो जानी चाहिए और मुझे यह सुनकर प्रसन्नता हुई है कि वह काम पूरा हो गया है। इस बार में इसी ३० सितम्बरसे पहले विदेशी चीजोंका पूर्ण बहिष्कार चाहता हूँ। अन्य सभी प्रान्तोंमें स्वदेशी पूरे जोरोंपर है और में बंगालके भाई-बहनोंसे इस बातका आश्वासन चाहता हूँ कि मेरी इस नई योजना में आप लोग मेरी मदद करें। स्वदेशीके मामलेमें बंगाल अन्य सभी प्रान्तोंसे पिछड़ा हुआ है। मुझे इस बातका दुःख है कि बंगालने इस कार्यक्रमके सम्बन्धमें बहुत कम उत्साह दिखाया है। मैं जानता हूँ कि बंगाल बौद्धिक दृष्टिसे काफी सम्पन्न है और अन्य प्रान्तोंसे बढ़ा- चढ़ा है, किन्तु मेरी समझमें नहीं आया कि इस महान कार्यमें वह क्यों पिछड़ा हुआ है। बंगालने ही स्वदेशी धर्मको पहले-पहल अपने यहाँ चलाया। पुराने जमाने में बंगाल में ही अच्छा बारीक हाथका कता कपड़ा तैयार हुआ करता था और मुझे यह सुनकर आश्चर्य होता है कि यह काम बंगाल अब नहीं कर पा रहा है। मुझे विश्वास है कि जब बंगाली लोग यह समझ जायेंगे कि स्वदेशीके इस्तेमालसे स्वराज्य मिलना सम्भव है तो वे इस महीनेके शेष २४ दिनोंमें हो यह महान कार्य पूरा कर दिखायेंगे। मुझे दुःख है कि वकील लोग अभीतक वकालत जारी रखे हुए हैं परन्तु जिस समय श्री दास और पण्डित मोतीलाल नेहरूने[१] अपनी वकालत छोड़ी थी उसी समय मेरा उद्देश्य पूरा हो गया था। दुर्गा पूजा बिल्कुल पास आ रही है और यह हिन्दुओंका एक बहुत बड़ा उत्सव है। इस अवसरपर काफी कपड़े खरीदे जाते हैं। मैं आप लोगोंसे करबद्ध प्रार्थना करता हूँ कि आप एक पैसेके भी विदेशी मालकी, खासतौरपर कपड़ोंकी, खरीद न करें। मुझे आशा है कि यदि लोग तत्काल ही मेरे निवेदनपर अमल करेंगे तो वे ईश्वरके आशीर्वादके भागी बनेंगे।

आगे बोलते हुए श्री गांधीने कहा कि बंगालके विभाजनके समय के स्वदेशी आन्दोलनमें और वर्तमान आन्दोलन में काफी फर्क है। बंगालके विभाजन-कालमें यदि कोई प्रतिबन्ध थे भी, तो सख्त नहीं थे, और वे विदेशी वस्त्रके बहिष्कारतक ही सीमित थे। विदेशी वस्त्रोंका अर्थ था लन्दन में बने कपड़े, किन्तु जापान में बनी चीजों के इस्तेमालकी छूट थी। वर्तमान स्वदेशी धर्मका अर्थ हर तरहके विदेशी वस्त्रका पूर्ण बहिष्कार है और केवल हाथके कते सूतसे बुने कपड़े ही स्वदेशी माने जायेंगे। उस

  1. (१८६३ - १९३१ ); वकील और प्रमुख राजनीतिज्ञ; भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके दो बार अध्यक्ष।