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३५. परोपकारी पारसी

[ १० सितम्बर, १९२१][१]

मैं पारसियोंकी उदारताका विचार जब-जब करता हूँ तब-तब मुझे यह लगता है कि मुट्ठी भर पारसियोंने दुनियामें जो इतनी कीर्ति कमाई है वह केवल अपनी दानशीलतासे कमाई है। प्रसिद्ध जातियोंमें सबसे अल्पसंख्यक जाति पारसियोंकी है। इन अस्सी हजार स्त्रियों और पुरुषोंका इतना खयाल दुनिया क्यों करती है ? पारसियोंके पास शस्त्र बल नहीं है, उनमें कोई ढोंग या पाखण्ड नहीं है और उनके पास कोई जादू नहीं है अथवा यदि कोई जादू है तो वह यह दानशीलताका ही जादू है।

यदि पारसी लोग करोड़ों रुपये कमानेपर भी उन्हें पेटियोंमें बन्द करके रख देते तो उनका अस्तित्व कभीका मिट गया होता। दानशीलता आत्मशक्ति है और आज पारसी अपनी इस आत्मशक्तिसे ही अपना अस्तित्व बनाये हुए हैं और कीर्ति प्राप्त कर रहे हैं।

किन्तु पारसियोंकी दानशीलता धनकी है। धन तो आता-जाता रहता है। यदि पारसी धन कमाना बन्द कर दें तो उनकी क्या दशा होगी ? धनकी दानशीलता आत्मशक्तिका एक अंश मात्र है। मैंने अपने पारसी मित्रोंसे बात करते हुए बहुत बार कहा है कि पारसियोंकी परीक्षा तो इस समय हो रही है। यदि वे अपने करोड़पतियों की संख्यासे ही अपनी कीर्ति कायम रखना चाहेंगे तो नहीं रख सकेंगे। असीम धनसे पारसियोंका आत्मविकास रुक जानेका पूर्ण भय है। मेरा पारसी जातिपर बहुत अनुराग है, यह बात हर पढ़े-लिखे पारसीको मालूम है। मैंने अपने इस अनुरागका कारण भी बता दिया है। अपने इस अनुरागके कारण ही मैंने पारसियोंमें अवनतिके जो चिह्न देखे हैं उनसे मुझे दुःख होता रहा है।

कोई जाति केवल अनुकरण करके अपना अस्तित्व कायम नहीं रख सकती। कोई जाति विलासितामें पड़कर जीवित नहीं रह सकती। मैंने देखा है कि पारसियोंकी जिन्दगी आरामतलबीकी हो गई है। पारसियोंके लिए अस्पताल, पारसियोंके लिए आरामसे रहनेका इन्तजाम, पारसियोंके लिए अलग कोष। मैं घबरा गया। मैंने देखा कि दानशीलताने ऐसा रूप ग्रहण किया है कि इससे पारसियोंकी जाति शायद पिछड़ जायेगी। जो जाति दान-पुण्यके सहारे जीवित रहती है उसका नाश ही हो जाता है। अपने शरीर के पसीनेसे प्राप्त सुविधाएँ ही मनुष्यको पच सकती हैं। जो मनुष्य अपनी जातिकी दी हुई सुख-सुविधाओंका कमसे कम उपयोग करता है उसीका पुरुषार्थं सच्चा है। मनुष्यको कठिनाइयोंकी निहाईपर ही परखा जाना चाहिए।

मनुष्य एक-दूसरेकी नकल करनेके लिए ही नहीं जन्मा है। एक बालकका भी विशेष व्यक्तित्व होता है। खान-पान आदि क्रियाएँ तो पशुओंमें भी होती हैं। हम

  1. यह लेख पहले साँझ वर्तमानके पटेटी-अंक ( नववर्षोंक) में प्रकाशित हुआ था । १९२१ में पटेटी इसी तारीखको थी।