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परोपकारी पारसी

पशुत्वसे ऊँचे उठ गये हैं उसका एक ही कारण है -- हममें बुद्धि है, विवेक है, सार-असारके विवेचनका गुण है। जिस कार्यको हम ज्ञानपूर्वक करते हैं उसको पशु अज्ञानपूर्वक करते हैं। हम चाहें तो एक चींटीके व्यवहारको देखकर उसकी उद्योगशीलताका अनुकरण कर सकते हैं, किन्तु यदि हम इस अनुकरणको ज्ञानपूर्वक करेंगे तो उसमें विविधता होगी। ज्ञानपूर्वक किये गये अनुकरणमें नकल नहीं होती, किन्तु जब एक गुलाम मालिककी नकल करने बैठता है तब वह नीचे ही गिरता है।

इसलिए जब पारसी युवक भाइयों और बहनोंने असहयोगमें भाग लेना आरम्भ किया तो मुझे प्रसन्नता हुई। असहयोगका हेतु सरकारको अथवा सरकारके अन्यायको पराजित करना भले ही हो, किन्तु पारसी भाइयों और बहनोंके मस्तिष्कमें में उसका मुख्य हेतु ही बैठाना चाहता हूँ। असहयोगका अर्थ है आत्मशुद्धि। चिकित्सा-शास्त्रका नियम है कि जिसके शरीरमें बिलकुल शुद्ध रक्त है उसपर रोगके कीटाणुओंका प्रभाव नहीं हो सकता। शुद्ध रक्त स्वयं रोगके कीटाणुओंका नाशक है। इसी प्रकार यदि हम स्वयं शुद्ध होकर न्यायशील बन जायें तो अन्याय हमारी क्या हानि करेगा? अन्यायीको दण्ड देना अनुचित नीति है। हमें उसके अन्यायके वश न होकर स्वयं दुःख भोगना चाहिए और उसका उत्पीड़न सहना चाहिए, यही उचित नीति है; क्योंकि इस प्रकार कसौटीपर चढ़नेके बाद हमारा उत्पीड़न कोई नहीं कर सकता।

आत्मशुद्धिकी कोई हद नहीं। किन्तु हमने अपने लिए आत्मशुद्धिकी जो हद रखी है वह तो इतनी करीब है कि वहाँतक तो एक बालक भी पहुँच सकता है।

१. हम अपनी छोड़कर परायेकी फिक्र क्यों करें ? भारतमें करोड़ों लोग भूखे मरें और हम बाहरके लोगोंके साथ व्यापार करें यह अपनोंके प्रति हमारा अत्याचार है। इस अत्याचारको दूर करने के लिए हमें अपने देशका बना कपड़ा ही पहनना चाहिए और विदेशी कपड़ा चाहे कितना ही सुन्दर लगता हो, फिर भी त्याग देना चाहिए। ऐसा करने के लिए हम सबको पींजने, कातने और बुननेका काम करने लग जाना चाहिए। इस तरहका आचरण करके हम स्वावलम्बी बन जायेंगे।

२. इस तरह के शुद्ध स्वदेशी-व्रतका पालन करने के लिए हमें सादगी अपनानेकी बहुत जरूरत है। सादगी अपनाने में हमारा कपड़े पहननेका हेतु भी बदलेगा। हमें कपड़ा सजावट के लिए नहीं बल्कि शरीरको ढकने के लिए पहनना चाहिए। इसलिए हमें वैसे ही और उतने ही कपड़े पहनने चाहिए जैसे और जितने कपड़े हमारे देशकी जलवायु के लिए उपयुक्त। भारतके लिए सफेद रंग सबसे ठण्डा रंग है। वह आँखको भी सुहाता है। सफेद कपड़े में मैल तुरन्त दिखाई देता है, इसलिए सफेद कपड़ा पहननेपर हमारे लिए साफ रहना जरूरी हो जाता है। बनियान, कमीज और वास्कट पहनना और उनके ऊपर कोट डाल लेना यह तो शरीरपर अत्याचार करने जैसा है। यदि बनियानके साथ दूसरा कोई कपड़ा पहनना हो तो वह कुरता हो सकता है। इससे अधिक कपड़े पहनना व्यर्थ है। अंग्रेजी पतलून खादी के पाजामेका मुकाबला नहीं कर सकती। हमारे देशमें कुर्सियोंकी जरूरत नहीं है। अधिक ठण्डी और तरल जलवायुके देशमें उनकी जरूरत भले ही हो। हम लोग कलफसे कड़ी बनी हुई और तंग पतलून पहन ही नहीं सकते। हमारे लिए तो ढीला और नरम पाजामा पहनना ही अच्छा