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भाषण : कलकत्ता के खिलाफत स्वयंसेवकोंकी सभा में

करके आप पारसी भारतके पूरे आधुनिक ऋषि बनें, यही मेरी इच्छा है। महात्मा जरतुश्तका जीवन नीतिसे भरा हुआ है। मैं चाहता हूँ कि पारसियोंमें नीतिका पूरा विकास हो। स्वराज्यमें नीतिवान, निर्भय, सीधे-सादे, वीर, सच्चे और दृढ़ चरित्र स्त्री-पुरुषोंकी जरूरत है।

अब मेरा खयाल है कि हम दानशीलताका नया अर्थ ग्रहण करने के लिए तैयार हो गये हैं। दानशीलताका अर्थ केवल धन देना ही नहीं है बल्कि दानशीलताका अर्थ है तन, मन, धन देना। पारसी भाई और बहन अपनी इन समस्त शक्तियोंको भारतके हितार्थ अर्पण करें, मैं उनसे यह माँग पारसी नववर्ष-दिवस -- पटेटीकी बधाई देते हुए करता हूँ। उससे पारसियोंकी दानशीलता और भी चमकेगी और पारसी सदा परोपकारी माने जायेंगे। मेरी ईश्वरसे प्रार्थना है कि पारसी भाई ऐसे बनें।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १५-९-१९२१


३६. भाषण : कलकत्ताके खिलाफत स्वयंसेवकोंकी सभामें

१० सितम्बर, १९२१

शनिवार की शामको खिलाफत समिति और बड़ा बाजार कांग्रेस कमेटीके लगभग ५०० स्वयंसेवकों की सभा श्री चित्तरंजन दासके निवासस्थानपर हुई। श्री गांधी, मौलाना मुहम्मद अली और पण्डित मोतीलाल नेहरूने उनका निरीक्षण किया। स्वयंसेवकों के समक्ष भाषण देते हुए श्री गांधीने कहा कि मैं आपसे मिलकर बहुत प्रसन्न हुआ हूँ। मेरा विश्वास है कि स्वयंसेवकों की मददसे मैं स्वराज्य प्राप्त कर सकूंगा। मैं जानता हूँ कि स्वयंसेवकोंने स्वराज्य और खिलाफत तथा पंजाबकी खातिर अपने प्राण न्यौछावर करनेकी तैयारीके साथ अपने नाम दर्ज कराये हैं। उन्होंने स्वयंसेवकोंसे कहा कि आप लोग अनुशासन बनाये रहें।. . . मुझसे बाहरी लोगोंने और मारवाड़ियोंने भी शिकायत की है कि स्वयंसेवक लोगोंका व्यवहार कभी-कभी खराब रहा है। स्वयंसेवकों के ऐसे आचरणका यदि उन्होंने वास्तवमें ऐसा किया है तो, मुझे बहुत खेद है।

धरनेका उल्लेख करते हुए श्री गांधीने कहा कि स्वयंसेवक लोग धरना देना जारी रखेंगे परन्तु उसमें दया, सौजन्य, और मैत्रीभाव होना चाहिए। वे कोई भी ऐसा काम न करें जो किसीको भी भावनाको चोट पहुँचाये क्योंकि अन्यथा वे हमारे उद्देश्यको बहुत बड़ी क्षति पहुँचायेंगे और उसका भारी अहित करेंगे।

अली भाइयोंकी सम्भावित गिरफ्तारीके बारेमें बोलते हुए उन्होंने कहा कि मैं जानता हूँ कि मेरे ये दोनों भाई शीघ्र ही गिरफ्तार होनेवाले हैं, और वे जेल भेज दिये जायेंगे। मुझे आशा है कि यदि ऐसी नौबत आ ही जाये तो उन्हें उत्तेजित नहीं होना चाहिए और अपना क्रोध काबू में रखना चाहिए. . .|

[ अंग्रेजीसे ]
अमृतबाजार पत्रिका, ११-९-१९२१