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३७. भेंट : संवाददाताओंको

[११ सितम्बर, १९२१ या उसके पूर्व ]

डाक्टर रवीन्द्रनाथ ठाकुर और श्री गांधीकी भेंटके[१] प्रकाशित विवरणोंके बारेमें एक प्रेस संवाददाता द्वारा यह पूछे जानेपर कि आपमें और उनमें क्या वार्तालाप हुआ था गांधीजीने कोई भी वक्तव्य देनेसे यह कहकर इनकार कर दिया कि यद्यपि हमारी भेंट में कुछ भी गोपनीय नहीं था फिर भी दो सार्वजनिक व्यक्तियोंकी आपसी भेंट में क्या-क्या बातें हुईं यह जाननेका जनसाधारणको क्या हक है ? उन्होंने इसलिए भी कोई वक्तव्य देने से इनकार किया कि उनके कथनके अनुसार सभी मनगढन्त विवरणों[२] में मुझे और मेरे उद्देश्यको बदनाम करनेकी कोशिश की गई है, किन्तु मैं जानता हूँ कि मेरा उद्देश्य और मैं, दोनों ही कविके हाथोंमें सुरक्षित हैं; अखबारों में चाहे जो कुछ कहा गया हो।

[ अंग्रेजीसे ]
अमृतबाजार पत्रिका, ११-९-१९२१


३८. असम के अनुभव -- २

ब्रह्मपुत्रपर

जहाज नदीपर चल रहा है। मेरा तीसरे दर्जे में मुसाफिरी करना तो कभीका बन्द हो चुका है। हम सब पहले दर्जेके डेकपर बैठे हुए हैं। जब कभी तीसरे दर्जेकी याद आती है, पहले या दूसरे दर्जे में अपनी यात्रापर शर्म मालूम होती है। किन्तु यह भी ठीक है कि ऐसे लम्बे दौरेमें जहाँ विश्रामकी गुंजाइश नहीं है, मेरा स्वास्थ्य तीसरे दर्जेकी यात्रा बर्दाश्त नहीं कर सकता। तथापि, मैं यह मानता हूँ कि हम लोगोंको तीसरे दर्जे में सफर करने लायक मजबूत होना चाहिए और हमारे शरीरको इस सबका खासा अभ्यास होना चाहिए। जबतक हम तीसरे दर्जेसे डरकर दूर रहेंगे तबतक उसकी हालत नहीं सुधर सकती, वहाँकी मुसीबतें जैसीकी-तैसी बनी रहेंगी। सैकड़ों कार्यकर्त्ता अगर पहले-दूसरे दर्जे में ही मुसाफिरी करने लग जायें तो जनता बेचारीका सारा पैसा उनके सफर खर्च में ही लग जाये और हमारी स्वराज्यकी नैया तिलभर भी आगे न बढ़ सके। रैयतका पैसा खर्च करते समय हमें हर बार विचार करना चाहिए। मैं यह इसलिए कह रहा हूँ कि इस सम्बन्ध में एक धनी आदमीकी कही गई बात मैं भूल नहीं पाता। वे स्वयं एक सार्वजनिक कार्यकर्त्ता हैं। मेरे खादीकी बात

  1. ६ सितम्बरको कलकत्तामें।
  2. १०-९-१९२१ के स्टेट्समैन में।