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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

असमका हाथी

असम जिस प्रकार अपनी बुनाईकी कलाके लिए मशहूर है उसी तरह हाथियोंके लिए भी। भोजपत्रपर लिखी हुई, दो सौ वर्ष पुरानी हस्ति-विद्याकी एक पुस्तक भी मुझे दिखाई गई थी। उसमें मज़मूनके अलावा हाथी वगैराके कई खूबसूरत चित्र भी थे। उनके रंग अनूठे थे। वैसे सुहावने रंग क्वचित् ही दिखाई देते हैं। चित्रोंमें तारतम्यका खयाल भी इतना रखा गया है कि देखनेवालेके मनमें असमकी प्राचीन कलाके प्रति अभिमान उत्पन्न हुए बिना नहीं रह सकता।

एक हाथी की कीमत ६,००० रुपयेतक आंकी जाती है। और वह बोझ ढोने और शिकारके अवसरोंपर काममें लाया जाता है। एक अनुभवी आदमीने मुझसे कहा कि जंगली हाथीको पकड़ते समय उसके साथ बड़ी क्रूरता बरती जाती है। हाथी संगीतप्रिय होता है, इस कारण कभी-कभी महावत गाना सुनाकर उसे अपना बना लेनेका प्रयत्न करता है। हाथीको हमारी भाषाकी अच्छी परख है। यहाँतक कि वह गुस्से या प्रेमके शब्दोंको भी पहचान लेता है। उसने मुझसे यह भी कहा कि 'शाबाश' शब्दसे असमका हरएक हाथी परिचित है। हाथीदांत तो असममें बहुतायत से होना स्वाभाविक ही है। मैं यह जानकर बहुत खुश हुआ कि असममें हाथीदाँत के लिए हाथी नहीं मारे जाते। यही नहीं, इसके लिए हाथियोंको मारनेकी मनाही भी है।

असमका रेशम

असम में दो तरहका रेशम होता है। और दोनों ही तरहका रेशम कीड़ोंसे पैदा होता है। एकका नाम है -- अंडीकेरी और दूसरेका नाम मूंगा। अंडीका रेशम तैयार करनेमें कीड़ेका नाश नहीं किया जाता। उसका कोया रुईकी तरह काता जाता है। मूंगेका रेशम मूंगा खुद ही कातता है। जब कताई खतम हो जाती है तब मूँगेको धूपमें रखकर मार डालते हैं। इसके बाद कोयेको पानीमें उबालकर रेशम चरखीपर लपेट लिया जाता है। यह काम हमारे सामने करके भी दिखाया गया। दोनों तरहका रेशम असम में बहुतायत से तैयार किया जाता है। इस उद्योगके चलते हुए भी वहाँ विदेशी रेशमका चलन बहुत बढ़ गया है, और बहुतसे जुलाहे स्त्री-पुरुष दोनों, तानेमें सिर्फ विदेशी रेशमका ही इस्तेमाल करने लगे हैं।

रुईकी क्रिया

रुईकी क्रिया भी मैंने देखी। मैं समझता हूँ कि आन्ध्रकी तरह महीन कपड़ा असममें भी तैयार होने लग जायेगा। हाल ही में तैयार किया हुआ ऐसा एक कपड़ा मुझे दिया गया है। दो सौ वर्ष पुरानी सूतकी महीन साड़ियाँ भी मुझे दिखाई गई। अब कितनी ही जगह मिस्रकी कपास के पौधे भी लगाये जा रहे हैं। और मैंने सीधे उसकी बौंडीसे ही सूत कतते देखा। दूसरी तरहकी रुई आन्ध्रकी प्रणालीसे काती जाती है। हरएक बीजको पहले तो मछली के दाँतसे सँवारते हैं, ताकि उसके सब रेशे अलग- अलग हो जायें। दाँतोंमें जो रुई रह जाती है उसे वैसी ही कातकर उस सूतसे खादी बुनते हैं। इसके बाद बिनौलोंमें चिपकी हुई रुईको अलग करके धुना जाता है। हर बौंडीपर यही किया जाता है। इस तरहकी रुईको कातकर महीनसे-महीन