सूत तैयार किया जाता है। अगर असमकी स्त्रियोंमें उत्साह पैदा हो तो उनसे मिल सकनेवाली सहायताका पारावार ही न रहे। स्वदेशी के पालनमें मदद करनेकी असमकी शक्ति मुझे तो पंजाबसे भी ज्यादा मालूम होती है। असमकी औरतें पैसेकी गरजसे नहीं, बल्कि देशप्रेमके कारण ही कातेंगी और बुनेंगी। यहाँ भी स्त्रियाँ अपनी रुई स्वयं ही तैयार कर लेती हैं।
शोणितपुर
अब हम तेजपुर आ पहुँचे हैं। इसका पुराना नाम शोणितपुर है। कहा जाता है कि किसी अंग्रेज हाकिमको 'शोणितपुर' शब्दका उच्चारण कठिन मालूम हुआ। उसने जब शोणितका असमिया भाषामें अर्थ पूछा तो उसे मालूम हुआ कि असमिया लोग शोणितको 'तेज' कहते हैं। इसलिए उसने शोणितपुरका नाम तेजपुर रख दिया। कहा जाता है कि तेजपुर पहले बाणासुरकी राजधानी था; इसीसे पुराण लेखकोंने उसे शोणितपुर लिखा है। आख्यायिका है कि उषाके लिए चित्रलेखा, अनिरुद्धको द्वारिका से यहाँ उठाकर लाई थी। कहते हैं, अर्जुन ठेठ मणिपुरतक गया था। ब्रह्मपुत्रके पूर्वी किनारेपर पहला शहर पाण्डु है। पाण्डव लोग अज्ञातवासके समय वहाँतक आये थे। पाण्डुसे पाँच मीलके फासलेपर ब्रह्मपुत्र के किनारे ही गोहट्टी है जहाँ से हम तेजपुर पहुँचे हैं। गोहट्टीका भी प्राचीन नाम। कहते हैं, हरिहरयुद्ध तेजपुरके पास ही हुआ था और श्रद्धालु लोग, जहाँ रुद्रने खड़े होकर युद्ध किया था, वहाँ उनकी पादुका भी बतलाते हैं। इस तरह मैं जहाँ जाता हूँ, वहीं इस बातके प्रमाण मिलते हैं कि पहले हिन्दुस्तान एक था।
बागान मालिक-राज्य
तेजपुरकी आबादी ६ हजार होगी। लेकिन वहाँ नगरपालिका है, रेलवे और बिजलीकी रोशनी है और पानीके नल भी हैं। यह सब क्यों है ? इसका उत्तर फौरन ही दिया जा सकता है। तेजपुरके नजदीक ही चायके बड़े-बड़े बागान हैं। बस इसी चायको ढोने के लिए रेलें हैं और इस बन्दरगाहके रास्ते से चाय भेजी जाती है। लोग यही मानते हैं कि असम में बागान मालिकोंका राज्य है और अंग्रेजी राज्य तो है ही लेकिन कर्ता-धर्त्ता सब बागान मालिक ही हैं। चाँदपुरमें गरीब मजदूरोंपर जो ज्यादती हुई थी वह मि० एन्ड्रयूजका कहना है कि इन बागान मालिकोंके ही लिए हुई थी।
ब्रह्मपुत्रका पानी गंगाकी तरह आरोग्यवर्धक नहीं माना जाता। इस कारण असममें कितनी ही जगह दरवाजेके सामनेसे नदीके बहनेपर भी लोग नलका पानी ही काममें लाते हैं। इसे कुछ खारोंसे निथारकर काममें लाया जाता है। खास तेजपुरमें ९० फुट ऊँचा एक हौज बनाया गया है, उसमें पानी निथारा जाता है और फिर वह नलके द्वारा लोगोंतक पहुँचाया जाता है।
पूर्व बंगालके अनुभव
अवर्णनीय दृश्य
डिब्रूगढ़ छोड़नेके बाद रेलगाड़ी ऐसे कितने ही प्रदेशोंसे होकर गुजरी, जिनकी शोभा अभीतक आंखोंके आगे बनी है। लमडिंग जंक्शनको असमकी हद कह सकते