पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/१२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पा लें। जिन लोगोंकी हिम्मत आजतक वकालत छोड़ने की नहीं हुई, वे वकालतको ठोकर मार दें। जब सभी लोग ऐसा करेंगे तभी और सिर्फ तभी, खिलाफतका काम बनेगा और स्वराज्य मिलेगा, एवं हम अपने ही हाथोंसे तुरन्त जेलके दरवाजे खोलकर अपने बेगुनाह भाइयोंको और उन लोगोंको जो सरकारके कोपके शिकार होकर जेलमें बन्द हैं, बाहर ले आ सकेंगे। यह बात मैंने श्रोताओंको खूब अच्छी तरह समझाई।

स्वयंसेवक

चटगाँव में मैंने स्वयंसेवकोंके कामको बढ़ता हुआ पाया। उनमें नियमोंका पालन करने की शक्ति अधिक देखी। यहाँ बड़ा भारी जुलूस निकाला गया था। तो भी मोटरके पीछे भीड़ नहीं हुई। हजारों लोग शान्तिके साथ कतार बन्द खड़े थे और मोटर बिना बाधाके चलती रही। जयघोष इत्यादिकी बन्दी कर दी गई थी। इससे वह दृश्य मुझे बड़ा भव्य लगा।

हड़ताली रेल-मजदूर

हड़ताली रेल-मजदूरोंके विशाल समुदायसे मेरी भेंट यहीं हुई। उनके साथ मैंने काफी समय बिताया। उनके समक्ष किया हुआ भाषण[१] 'नवजीवन' में प्रकाशित होगा इसलिए यहाँ उसके बारेमें कुछ नहीं लिखता।

बारीसाल

चटगाँवसे रवाना होकर हम बारीसाल गये। बारीसाल जाते हुए रास्तेमें चाँदपुर पड़ता है। चाँदपुरमें उस स्थानको देखा जहाँ गुरखाओंने बेचारे बेकस मजदूरोंपर ज्यादती की थी। देखकर हृदय रो उठा। अपनी गुलामीकी याद आई। ये तो गरीब मजदूर थे। उनके लिए जो हड़तालें हुईं उनसे हिन्दुस्तान कुछ चौंका। परन्तु अगर बड़े आदमियोंको बन्दूकके कुंदे मार-मारकर आधी रातको घरसे बाहर निकाला होता तो आज सारे हिन्दुस्तानमें हाहाकार मच जाता। स्वराज्यके तो मानी यह हैं कि राजा और रंक सबके साथ एक-सा इन्साफ हो। क्या हमारे स्वराज्यमें ऐसा होगा ? न हो तो वह स्वराज्य हरगिज नहीं हो सकता।

बारीसाल, प्रख्यात बुजुर्ग, बाबू अश्विनीकुमार दत्तका शहर है। इस प्रान्तमें धानकी फसल बहुत अधिक होती है। श्रीयुत अश्विनीकुमार दत्तने चालीस वर्ष पहले ५० हजार रुपया लगाकर एक बड़ी पाठशाला स्थापित की थी। वह आज राष्ट्रीय पाठशाला है। उसके मुख्य अध्यापक हैं श्रीयुत जगदीश बाबू। आप बाल ब्रह्मचारी हैं। इस समय उनकी अवस्था ५० वर्षसे ज्यादा है। सब लोगोंने मुझसे कहा कि वे बहुत ही सच्चरित्र और निरभिमानी विद्वान् पुरुष हैं।

बारीसालमें, कह सकते हैं कि, स्वदेशीका काम ठीक चल रहा है। पूर्वोक्त पाठशाला के विद्यार्थियोंका काता हुआ सूत मुझे दिखाया गया था। वह बहुत ही महीन था। एक करघा विभाग भी है। उसमें कोई ८० करघे चलते हैं। उनके पास इस

  1. देखिए “भाषण : चटगाँवमें, रेल कर्मचारियोंके समक्ष ”, ३१-८-१९२१।