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पतित्व बहनें

समय १५ हजार रुपयेसे ऊपर करघोंपर तैयार हुआ माल है। इस करघा-गृहमें जितनी सफाई मैंने देखी उतनी सूरतमें श्रीयुत जोशीके कारखानेके सिवा और कहीं नहीं देखी। सूतका एक धागा या तिनकेका एक टुकड़ातक मैंने जमीनपर पड़ा हुआ नहीं देखा। काम भी साफ-सुथरा था। इसी वर्ष में उस बुनाईशालाका जन्म हुआ है।

बारीसालमें चटगाँवकी भी अपेक्षा स्वयंसेवकोंमें अधिक नियमबद्धता पाई गई। सभा बड़ी भारी थी तो भी व्यवस्था भरपूर थी। हम लोगोंके जानेका रास्ता स्वयंसेवकोंने खुला रख छोड़ा था। पाँव न छूनेका अनुरोध तो लोगोंसे पहले ही से कर दिया गया था। इससे हमें बहुत सुविधा हुई।

बारीसाल एक ऐसा शहर है जहाँ बंग-भंगके आन्दोलनोंके दिनोंमें हिन्दू और मुसलमान दोनों, आपसी कलहके रहते हुए भी, मिलजुल कर काम करते थे। सब लोग इसका श्रेय बाबू अश्विनीकुमार दत्तको देते थे।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ११-९-१९२१

३९. पतित बहनें

मुझे बारीसालमें अनेक उल्लेखनीय अनुभव हुए। उन सबका वर्णन करने योग्य समय तो नहीं है; फिर भी एक प्रसंगका उल्लेख न करना असम्भव है। वह है बारीसालकी पतित बहनोंका। इस दृश्यको मैं कभी नहीं भुला सकता। बारीसालकी कितनी ही पतित बहनोंके नाम कांग्रेसके सदस्योंकी तरह दर्ज हैं। उन्होंने तिलक स्वराज्य कोषमें भी चन्दा दिया है। उनकी संख्या ३५० के करीब होगी। उन्होंने मुझे पत्र लिखा था कि हम आपसे मिलना चाहती हैं। वे कांग्रेसमें कुछ अधिक कार्य करना चाहती थीं। उनका कहना था कि वे क्यों न चुनावके लिए खड़ी हों और चुनकर आ जानेपर कांग्रेस में कोई पद क्यों न सँभालें ? ज्यों ही मैं रातको सभासे आया, मैंने कोई सौ बहनोंको एक कोने में खड़े देखा। मुझे ध्यान आ गया और मैं बड़े आदरके साथ उन्हें छतपर ले गया। एक दुभाषियेको साथ रखकर शेष पुरुषोंको विदा कर दिया। मैंने उनसे कहा कि तुम दिल खोलकर अपनी बात मुझसे कहो। उनमें चार पाँच दस वर्षकी लड़कियां भी थीं। कुछ प्रौढ़ और बाकीकी बीससे तीस वर्षके अन्दर होंगी। उनके साथ मेरी जो बातचीत हुई, मैं उसका सार संवादके रूपमें यहाँ दे रहा हूँ :

सवाल : बहनो, तुम यहाँ आई यह बहुत अच्छा हुआ। मैं तो तुम्हें अपनी बहन और बेटियोंके समान समझता हूँ। मैं तुम्हारे दुःखमें हाथ बँटाना चाहता हूँ; लेकिन यदि तुम मुझसे कुछ छिपाकर रखोगी तो मैं तुम्हें सहायता देनेमें असमर्थ हो जाऊँगा। जवाब : आप जो कुछ पूछेंगे हम उसका उत्तर बिलकुल सही-सही देंगी।