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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सवाल : तुममें से कुछकी उम्र ज्यादह मालूम होती है। क्या वे भी अबतक तुम्हारे इस पेशेमें अटकी हुई हैं?

ज० : नहीं, जिनकी उम्र ज्यादह हो गई है, वे भीख माँगकर अपना पेट भरती हैं।

स० : ऐसा करना शोभा देता है?

ज० : यह पेट सब-कुछ कराता है।

स० : ये लड़कियाँ तो छोटी-छोटी हैं। क्या इनका भी यही हाल है ?

ज० : हम तो यह आशा करके आपके पास आई हैं कि आप कोई रास्ता बतायेंगे। हममें से कोई भी इस पेशे को नहीं करना चाहती।

स० : अच्छा, जो जवान हैं उनका क्या विचार है? इस पेशेकी भोग-सामग्री पर उनका मन ललचाता तो नहीं ?

ज० : जी हाँ, कुछ ऐसी अवश्य हैं।

स० : तुम लोगोंके बाल-बच्चे भी होते होंगे?

ज० : जी, किसी-किसीको होते हैं।

स० : यहाँ तुम्हारी कुल संख्या कितनी होगी?

ज० : तीन सौ पचास।

स० : इसमें बाल-बच्चे कितने हैं?

ज० : कोई दस।

स० : लड़के या लड़कियाँ?

ज० : कोई छः लड़की और बाकी लड़के।

स० : लड़कोंका क्या करती हो?

ज० : एक लड़का बड़ा है। उसकी शादी हममें से ही एकके साथ कर दी गई है।

स० : तुम अपनी लड़कियाँ मुझे दोगी?

ज० : अगर आप परवरिश करें तो हम दे देंगी।

स० : कितनी बहनें इस पेशेंको छोड़ना चाहती हैं?

ज० : हम सभी।

स० : जो काम में बताऊँ उसे करोगी?

ज० : हम जानती हैं, आप क्या काम बतायेंगे। हममें से कुछने तो सूत कातना शुरू भी कर दिया है।

स० : यह सुनकर तो मुझे बड़ा सन्तोष हुआ। पर जिन बहनोंने कातना शुरू किया है उन्होंने अपना पेशा छोड़ दिया है या नहीं?

ज० : पेशा तो हमारे लिए आवश्यक बना हुआ है। केवल सूत कातकर हम अपना पेट कैसे पाल सकती हैं?

स० : आजकल तुम कितना कमा लेती हो? तुम जवाब देने में शरमाती हो। तुम्हारी शर्मका मतलब में समझ सकता हूँ। मैं तुम्हारे साथ बात तो कर रहा