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पतित बहनें

हूँ, पर मेरे दिलमें आग लग रही है। जो बात हो वह इस वक्त तो तुम मुझसे कह ही दो।

ज० : बहुत-सी साठ रुपया महीना पैदा कर लेती हैं । २ रु० रोज पड़ते हैं।

स० : यह तो मैं जानता हूँ कि इतनी आमदनी सूत कातकर तुम नहीं कर सकतीं। परन्तु तुम जो अनेक प्रकारके मनमोहक श्रृंगार विलास करती हो, इन्हें तो अब छोड़ ही देना होगा। मैं अकेले तुम्हींसे यह बात कहता हूँ, सो नहीं। मेरी धर्मपत्नीने भी शृंगारोंका त्याग कर दिया है। मेरे यहाँ कम उम्र की लड़कियाँ हैं। उनके मां-बाप उन्हें बढ़िया कपड़े-गहने दे सकते हैं। तो भी वे खादीकी धोतियाँ पहनती हैं और गहना तो किसी तरहका भी नहीं पहनतीं। इस कारण तुमसे बनाव-श्रृंगार छोड़ देनेका इसरार करते हुए मुझे जरा भी दुःख नहीं होता।

ज० : हम अपना जीवन सादा बनानेके लिए कोशिश करेंगी, कोई तुरन्त, कोई धीरे-धीरे। हममें से इस बहनने तो अपना सब कुछ रामकृष्ण मठको अर्पण कर दिया है और खुद अब भिक्षा माँगकर रहती है।

स० : इस बहनकी मैं वन्दना करता हूँ। अच्छा किया जो उसने सर्वस्व त्याग दिया। परन्तु मैं देखता हूँ कि ( उसकी ओर रुख करके) तुम्हारे हाथ पैर अच्छे हैं। अगर तुम सूत कातती हुई सादगी से रहो तो और भी पुण्य हो। मैं तो यह चाहता हूँ कि हिन्दुस्तानका ऐसा एक भी भाई या बहन, जिसके हाथ-पैर दुरुस्त हों, भीख न माँगे -- भीख माँगना एक शर्म की बात समझे। ऐसा कहनेका समय अब आ गया है। चरखा कामधेनु है। यह हमारे हाथ लग गई है। तुम बहनोंके महज सूत कातनेभरसे मुझे सन्तोष नहीं हो सकता। तुम्हें बुनना और धुनना भी सीखना चाहिए। तब तुम अपनी आजीविका पूरी तरह प्राप्त कर सकोगी।

ज० : आप हमें रास्ता बताइये। हम जरूर उसके मुताबिक चलेंगी।

स० : तुम कितनी बहनें कल ही से अपना पेशा छोड़ देने को तैयार हो ? इसके जवाब में ११ बहनें उसी वक्त खड़ी हो गईं। मैंने उनसे कहा कि खूब विचार कर लो। उन्होंने कहा कि हम अपने निश्चयपर कायम रहेंगी । विचार तो पहले ही से हमने कर रखा था। अब उसके अनुसार काम किस तरह करें; इसी उलझन में थीं। इसलिए मैंने कहा :

"अब तुम शादीका तो खयाल ही छोड़ दो। पर अगर तुम सचमुच शुद्ध हो जाओ तो भूतकालमें तुमने जो कुछ किया है संसार उसे भूल जायेगा। तुम गृहस्थाश्रमसे अलग होकर संन्यासिनी हो सकती हो और भारतवर्षकी सेवा कर सकती हो। अगर तुममें से बहुत सी बहनें रोज बारह घंटेतक, ईश्वरका भजन करती हुई काता-बुना करें तो प्रायः सारे बारीसालको अकेली तुम ही कपड़ा दे सकती हो। तुम्हारी श्रेणीकी हिन्दुस्तानकी सारी बहनें अगर यह गन्दा काम छोड़कर कातनेका पुण्य कार्य करने लगें तो सहज ही भारतवर्षका उद्धार हो जाये। इसलिए मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम ग्यारह बहनें अपने निश्चयपर दृढ़ रहोगी। मैं तो मुसाफिर हूँ। पर