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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं यहाँके अगुओंसे जोर देकर सिफारिश कर जाऊँगा और मुझे यकीन है कि यहाँकी कांग्रेस कमेटी तुमको पूरी-पूरी मदद देगी। ईश्वर तुम्हारा कल्याण करे।"

पाठको, आप चाहे भाई हों, चाहे बहन, मैं नहीं कह सकता कि इसे पढ़कर आपके मनपर और हृदयपर क्या असर होगा। मैंने आपके सामने पूरा वर्णन नहीं दिया है। यह तो अपनी शक्तिके अनुसार उसकी छाया-भर अंकित की है। चीजकी असलियत तो प्रत्यक्ष देखनेसे ही मालूम होती है। मैं तो स्त्रियोंके प्रति किये गये पुरुषोंके अपराधकी नाप-तौल करता हुआ मारे शर्मंके मरा जा रहा था। ये बहनें जानबूझकर इस पापमें नहीं पड़ीं। पुरुषोंने उन्हें इसमें गिराया है। अपने विषय-भोगके लिए उसने स्त्री-जातिके ऊपर घोर अत्याचार किया है। जिनको इस बातपर दर्द होता हो उन्हें चाहिए कि वे प्रायश्चित्त के रूपमें इन पतित बहनोंको हाथ बढ़ाकर सहारा दें। जब जब इन बहनोंका चित्र मेरी आँखोंके सामने आता है तब-तब मुझे खयाल होता है कि अगर ये मेरी ही बहनें या लड़कियाँ होती तो --? और 'होती तो' क्यों, हैं ही। उनको उठाना मेरा काम है; प्रत्येक पुरुषका काम है। इसीसे मुझे चरखेका स्वर बड़ा प्यारा लगता है। यह स्त्रियोंकी सुरक्षा करनेवाला किला है। हिन्दुस्तानमें रहनेवाली ऐसी बहनोंको सहारा देनेवाली दूसरी कोई चीज मुझे नहीं दिखाई देती। परन्तु जबतक हरएक शहरके रहनेवाले साधु पुरुष यह काम उठा न लें तबतक यह हो नहीं सकता। बारीसालमें इन बहनोंतक पहुँचनेवाले साधुचरित शरत्कुमार घोष और उनके साथ के एक असहयोगी वकील भूपति बाबू हैं। मैंने तो सिर्फ उनके तैयार किये हुए क्षेत्रसे लाभ उठा लिया।

बहनो, अब यह सब मालूम हो जानेके बाद तो तुमको भी इसपर विचार करना है। पतित बहनोंके हृदय-मन्दिरमें तो तुम्हीं प्रवेश कर सकती हो। जबतक ऐसी पतित बहनोंके उद्धारके लिए स्वयं तुम कमर न कसोगी तबतक मुझ जैसे लोगोंके प्रयत्न भी निष्फल होंगे।

स्वराज्यका अर्थ है-- पतितोंका उद्धार।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, ११-९-१९२१