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४०. टिप्पणियाँ

बालकोंका आशीर्वाद

मुझे बहुतसी बहनें और नवयुवक तो पत्र लिखा करते हैं; परन्तु बालकोंके पत्र शायद ही कभी आते हैं। एक पत्र अनायास आ गया है, उसे यहाँ देता हूँ--

आपकी आज्ञाके अनुसार मैं बहुत-कुछ करना चाहता हूँ। मैंने खादी पहनना शुरू कर दिया है। मैं और .... [१] पहले ही से असहयोगको मानते हैं। .... [२] मानता नहीं था, पर उसे अब इसमें पूरा विश्वास हो गया है। यदि हिन्दुस्तान के सारे बालकोंको आप असहयोगमें शामिल कर लें तो जरूर विजय प्राप्त करेंगे।

मैं जहाँ कहीं जाता हूँ, इस धर्म युद्धमें बहनोंके आशीर्वाद माँगता हूँ। क्योंकि मेरा विश्वास है कि उनका हृदय कोमल और पवित्र होता है। उनके दिलमें दाँव-पेंच और भेद-भाव नहीं रहता। वे तो इस संग्रामको पूरी तरह धर्म-युद्ध मानती हैं।

परन्तु बालकोंका हृदय तो बहनोंके हृदयसे भी अधिक निर्दोष होता है। बालकोंका आशीर्वाद किस तरह प्राप्त किया जाये? बिना अपने माँ-बापकी आज्ञाके भला वे एक कदम भी रख सकते हैं? इसलिए मैंने बालकोंके साथ सिवा विनोदके और कुछ नहीं किया। पर जब यह पूर्वोक्त पत्र मिला तब तो मुझे बड़ा हर्ष हुआ। मैं यह जानता हूँ कि उसकी भाषा किसी बालककी लिखी हुई नहीं है। यह पत्र बहुत करके उनके मास्टर साहबकी प्रेरणाका फल होगा। परन्तु मेरी माँग और मेरी इच्छा यही रही है कि माँ-बाप अपने बालकोंको सामान्य धर्मकी शिक्षा दें, पापके साथ असहयोग करना और शान्तिके शस्त्रका प्रयोग करना सिखायें, एवं इस धर्म-कार्य में उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।

इस संग्राममें क्या स्त्रियाँ, क्या बच्चे, क्या लूले-लँगड़े, सब शामिल हो सकते हैं, और ऐसा ही होना भी चाहिए। जितनी ही अधिक संख्या उनकी होगी उतनी ही जल्दी विजय प्राप्त होगी। इनमें न कोई ऊँचा है, न कोई नीचा; न कोई छोटा, न कोई बड़ा। बड़ा तो वही है जिसका हृदय बड़ा है; और जिसका हृदय छोटा है वही छोटा और अपाहिज है। इसलिए बालकोंका आशीर्वाद मुझे बड़ा मधुर मालूम होता है। वाइसरायकी मेहरबानीसे चाहे स्वराज्य न मिले, परन्तु बालकोंके निर्मल हृदयसे निकले आशीर्वचनोंसे अवश्य मिल सकता है।

दिवाली किस तरह मनायें

एक सज्जन कहते हैं कि इस बारकी दिवाली किस तरह मनाई जाये, इसके विषय में यदि आप पिछले सालकी तरह कुछ न लिखेंगे तो बहुत से लोग गफलत में रह जायेंगे और बेकाम बहुत-सा खर्च कर डालेंगे। उन्होंने मुझे यह अच्छी याद दिला

२१-७
 
  1. तथा
  2. साधन सूत्रमें नाम नहीं दिये गए हैं।