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कपड़ोंकी होलीका विरोध

नैतिक या उचित मान सकते हैं कि उन्हीं विदेशियों द्वारा तैयार किये गये और पापका परिधान मानकर अपने बदनपर से उतारे गये कपड़ों को हम स्मर्नाके लोगों को भेजें ? ऐसा दान तो दाता और ग्रहीता दोनोंके लिए लज्जाजनक माना जायेगा।

महोदय, अन्तमें में यह भी कहूँगा कि सड़े-गले भोजन तथा विदेशी कपड़े की तुलना करना समीचीन नहीं है, और जबतक स्वयं हमारे हजारों देशभाइयोंके तनपर सचमुच कोई वस्त्र नहीं है और उनके तनको ढकनेके लिए पर्याप्त खादी तैयार नहीं की जाती, तबतक ऐसे बहुतसे लोग होंगे जो एक गज भी विदेशी कपड़ा जलाना, या उसे ऐसी हालतमें, जब कि हमारे घरमें ही उसकी अधिक तीव्र आवश्यकता है, बाहर भेजना पाप मानेंगे।

मैं यह स्वीकार करता हूँ कि इस तरह कपड़ेको आगमें होमनेके दृश्यका लोगोंके मनपर बड़ा जबरदस्त असर होता है; यह भी मानता हूँ कि इससे जनताका मन आकर्षित होता है, और अस्थायी रूपसे ही सही, किन्तु तत्काल उसमें उत्साहकी लहर दौड़ जाती है। लेकिन मैं यह नहीं मानना चाहता कि आपने यह कार्यक्रम हमारे इतने सारे गरीब, नंगे तथा अकाल-पीड़ित देशभाइयोंकी आकुल आवश्यकताका खयाल न करके केवल इन्हीं इरादोंसे प्रेरित होकर अपनाया है।

भवदीय,
एन० वी० थडानी[१]

हैदराबाद, सिन्ध
३ अगस्त, १९२१

मैं श्री थडानीका यह तर्कपूर्ण पत्र यहाँ प्रसन्नतापूर्वक प्रकाशित करता हूँ। मैं पहले ही स्वीकार कर चुका हूँ कि विदेशी कपड़ोंको स्मर्ना भेजने के पीछे जो दलील दी जाती हैं, वह कमजोर है। लेकिन इसके पीछे भावना मुसलमानोंके मतका आदर करनेकी रही है। फिर भी, इतना तो है ही कि विदेशी कपड़ेका उपयोग भारतके लिए विषके समान है किन्तु स्मर्नाके लिए नहीं, क्योंकि वस्त्र उद्योग जिस तरह भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहा है उस तरह वह स्मर्नाकी अर्थव्यवस्थाकी रीढ़ नहीं रहा। विदेशी कपड़ा जलाने का मतलब है महीन, सुन्दर विदेशी कपड़ों के अपने मोहको जलाना। अगर हम शुरूमें इंग्लैंडके बजाय जापानके लालच पाशमें फँस गये होते तो इसका असर भी भारत के लिए उतना ही बुरा होता। विदेशी कपड़ोंकी होली जलाने में हमारा उद्देश्य विदेशियोंको नहीं अपने को ही दण्ड देनेका है। हम अंग्रेजी कपड़ोंका नहीं, बल्कि सभी विदेशी कपड़ोंका बहिष्कार कर रहे हैं। सभी विदेशी कपड़ोंका बहिष्कार एक पवित्र कर्त्तव्य है, इसलिए उसके बिना ब्रिटिश कपड़ोंके बहिष्कारका कोई अर्थ नहीं रह जायेगा। विदेशी कपड़ोंकी होलीके विचारके पीछे घृणाकी नहीं, बल्कि अपने अतीतके

  1. दिल्लीके हिन्दू कालेज तथा हैदराबाद (सिन्ध ) के नेशनल कालेजके प्रिंसिपल, शिक्षाशास्त्री तथा मिस्टरी ऑफ द महाभारत के लेखक।