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विचारकी उलझन

नहीं। उन्होंने जो कुछ किया, वह सच्ची विनयके सिवा और क्या था ? अगर सचमुच मेरी भावना ऐसी हो कि शराबखोरी एक भयंकर बुराई है और हर व्यक्तिको इसके पंजेसे बचाना है तो अगर मैं शराबखाने के सामने लेट जाऊँ और पीनेकी इच्छा लेकर वहाँ आनेवालोंसे कहूँ कि आप मेरे शरीरको कुचल कर ही शराब पीने जा सकते हैं तो क्या इसका मतलब बलप्रयोग होगा ? यह तो उसके हृदयको जगाने की कोशिश ही है। और नैतिक रूपसे समझाने-बुझानेका मतलब में इस तरह हृदयकी भावनाको जगाना ही समझता हूँ। सिनेट भवनके सामने लेटकर इन धरना देनेवालोंने परीक्षार्थियोंके हृदयकी भावनाको जगानेकी कोशिश की थी और निश्चय ही वह उन्हें समझाने-बुझानेका एक तरीका था। चूँकि बंगालके ये धरना देनेवाले किसी प्रकारके शरीरबलका उपयोग नहीं कर रहे थे, बल्कि परीक्षार्थियोंके हृदयकी भावनाको जगाने की ही कोशिश कर रहे थे, इसलिए अगर आप यह बतानकी कृपा करें कि आपने उनके तरीकेसे असहमति क्यों प्रकट की थी तो मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी।

बनारस,
१२ जुलाई, १९२१

भवदीय,
एस० एन० राय

उपर्युक्त पत्र लिखनेवाले सज्जनने बिना किसी कारणके यह मान लिया है कि उन्होंने जिस ढंगसे धरना देनेकी बात लिखी है, शराबकी दुकानोंपर उस ढंगसे धरना देनेका समर्थन मैं करूँगा ही। अगर धरना देनेवाले रास्ता रोकनेका यह अशोभन कार्य आग्रहपूर्वक करते ही रहते तो देशमें इसकी इतनी प्रतिकूल प्रतिक्रिया होती कि असहयोग आन्दोलन पूरी तरह बदनाम हो जाता। इसके अतिरिक्त शिक्षाकी तुलना शराबखोरीसे करना दूरकी कोड़ी भिड़ाना है। शिक्षा के सम्बन्ध में बात दो विचारोंके संघर्षकी है, और असहयोग इस पीढ़ीके लिए एक नया विचार है। लेकिन मद्यपानके सम्बन्धमें संघर्ष संयम और एक ऐसी बुराईके बीच है जिसे सभी बुराई मानते हैं। पहले उदाहरणमें जिस नौजवानको कालेजमें जानेसे रोका जाता है, वह सरकारी कालेजमें जानेको एक अच्छा कार्य मानता है, लेकिन शराबखोर शराबखोरीको एक बुरी लत ही मानता है। पढ़े-लिखे नौजवान अखबार पढ़ते हैं और उन्हें पक्ष-विपक्ष की सारी दलीलें ज्ञात रहती हैं। लेकिन शराबखाने में जानेवाले लोग कुछ नहीं पढ़ते और वे चूँकि सभा आदिमें भी नहीं जाते, इसलिए उन्हें वैसी कोई बात सुननेको भी नहीं मिलती। इसलिए कालेजों और स्कूलोंपर धरना देना न केवल अनावश्यक था बल्कि जिस तरीकेसे धरना दिया गया वह एक तरहकी हिंसा थी, जिसका किसी भी हालत में कोई औचित्य नहीं ठहराया जा सकता। और असहयोगियोंके लिए तो वैसा करना अपनी प्रतिज्ञा भंग करना था। इसलिए अगर मेरी तीव्र आलोचनाके कारण धरना उठा दिया गया तो मुझे इस बात के लिए खुशी है

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १५-९-१९२१