पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/१३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

४८. हमारी पतित बहनें

जो स्त्रियाँ पापकी कमाईपर गुजर करती हैं उनसे मिलनेका पहला अवसर मुझे आन्ध्र प्रान्त में कोकोनाडामें आया था। वहाँ सिर्फ छः बहनोंसे कुछ ही देर मुलाकात हुई थी। दूसरा मौका बारीसालमें[१] आया। वे सौसे ज्यादा थीं और पहलेसे समय तय करके मिलने आई थीं। उन्होंने पहले ही चिट्ठी भेजकर मुलाकात माँग ली थी और यह भी लिख दिया था कि हम कांग्रेसकी सदस्य बन गई हैं और हमने तिलक स्वराज्य कोष में चन्दा दिया है, लेकिन हम यह नहीं समझ पाई कि आपने हमें कांग्रेस कमेटियोंमें पद न लेनेकी सलाह क्यों दी। अन्तमें उन्होंने लिखा था कि हम अपनी आगेकी भलाईके बारेमें आपकी सलाह लेना चाहती हैं। जो सज्जन यह चिट्ठी लाये थे उन्हें उसे मुझे देते हुए बहुत संकोच हो रहा था। उन्हें डर था कि कहीं मैं उसे पाकर नाराज न होऊँ। मैंने उनका भय दूर करते हुए उन्हें यह आश्वासन दिया कि यदि मुझसे हो सके तो इन बहिनोंकी सेवा करना मैं अपना कर्त्तव्य समझता हूँ।

इन बहनोंके साथ मैंने जो दो घंटे बिताये वे मुझे हमेशा याद रहेंगे। उन्होंने मुझे बताया कि २०,००० स्त्री, पुरुष और बच्चोंकी आबादी में उनकी संख्या ३५० से ऊपर है। वे बारीसालके पुरुषोंके पापकी निशानी हैं और जितना जल्दी बारीसाल इस पापको धो डाले उतनी ही उसकी नेकनामी है। मुझे भय है कि जो हाल बारीसालका है वही हर शहरका है। इसलिए बारीसालका उल्लेख तो मैंने सिर्फ उदाहरणके तौर पर किया है। इन बहनोंकी सेवाका विचार करनेका श्रेय बारीसालके चन्द नौजवानोंको है। मैं आशा करता हूँ कि इस बुराईको मिटा देनेका श्रेय भी बारीसाल ही लूटेगा।

पुरुषके हाथों जो दुष्कर्म हुए हैं उनमें कोई इतना जघन्य और पाशविक नहीं है। जितना नारी जातिका यह दुरुपयोग। स्त्रियोंको मैं अबला नहीं, मनुष्य जातिका बेहतर अर्द्धांश मानता हूँ। पुरुषों और स्त्रियोंमें, मैं स्त्रियोंको ज्यादा सुसंस्कृत मानता हूँ क्योंकि वे आज भी सारे सद्गुणोंकी आगार हैं। उनमें त्याग है, मूक बलिदानकी शक्ति है, नम्रता, आस्था, ज्ञान आदि सब कुछ है। पुरुष अहंकारपूर्वक स्त्रीसे ज्यादा ज्ञान रखनेका दावा करता है किन्तु स्त्रीकी सहज-बोधकी शक्ति उसके इस ज्ञानसे अकसर ज्यादा सही साबित हुई है। हम जो सीताका नाम रामके पहले या राधाका कृष्णके पहले लेते हैं सो अकारण नहीं है। हमें भ्रममें पड़कर यह नहीं मान बैठना चाहिए कि चूंकि यह पापका व्यापार सभ्य यूरोपमें फैला हुआ है और कहीं-कहीं सरकारी इन्तजाममें भी होता है, इसलिए हमारे विकासमें भी इसके लिए गुंजाइश है। इस पापको हमें हिन्दुस्तानकी पुरानी नजीरें देकर भी स्थायी नहीं बनाना चाहिए। जब हम पुण्य और पापमें भेद करना छोड़ देते हैं और जिस प्राचीन कालकी हमें पूरी जानकारी नहीं है

  1. देखिए " पतित बहनें", ११-९-१९२१।