मुझे बताया कि वे दो रुपये रोज तक कमा लेती हैं। लेकिन उन्होंने माना कि पुरुषकी लम्पटताको सन्तुष्ट करनेके खातिर उन्हें ऐसी कई चीजोंकी जरूरत होती है जिन्हें वे कताई-बुनाईका धन्धा और फिरसे स्वाभाविक जीवन अपना लेनेपर छोड़ सकती हैं। मेरी मुलाकात खतम होनेसे पहले ही वे मेरे कहे बिना यह जान गईं कि अगर वे अपना पापका धन्धा न छोड़ें तो वे कांग्रेस कमेटियोंकी ओहदेदार क्यों नहीं बन सकतीं। स्वराज्यकी यज्ञशाला में कोई भी ऐसा आदमी अधिकारी बनकर नहीं बैठ सकता जो अपने हाथ और दिलको साफ करके न आया हो।
यंग इंडिया, १५-९-१९२१
४९. सिन्धमें दमन-चक्र
श्री घनश्यामदास जेठानन्द शिवदासानीने[१] निम्नलिखित टिप्पणी[२] जूनके अन्तमें तैयार कर ली थी लेकिन अपनी यात्राओंमें दूसरे कई कागजोंकी तरह मैं उसपर कोई ध्यान नहीं दे सका और वह मेरे पास यों ही पड़ी रही। पाठक मटियारीके गोली-काण्ड से तथा जूनके बाद स्वामी कृष्णानन्द[३] तथा अन्य व्यक्तियोंपर चलाये गये मुकदमोंसे तथा उन्हें दी गई सजाओंसे तो परिचित ही हैं।
यंग इंडिया, १५-९-१९२१
५०. अपील : हिन्दी-प्रेमी मित्रोंसे
मद्रास
१५ सितम्बर, १९२१
तीन वर्ष हो गये, मद्रास प्रान्तमें हिन्दी-प्रचार हो रहा है। खास इस काम के लिए बम्बई में रुपये वसूल किये गये थे। लेकिन आज काम इतना बढ़ा है कि उससे और मद्रास प्रान्तसे जो रुपये मिलने लगे हैं, उससे यह काम पूरा नहीं हो सकता। मुझे विश्वास है कि मद्रासमें काम सन्तोषजनक हो रहा है।