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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्या आप समझते हैं कि अहिंसा पालनमें कुछ अपवाद भी होंगे, जैसा कि मोपलोंके मामलेमें हुआ ?

हाँ, अपवाद अवश्य होंगे, लेकिन मेरा यह निश्चित मत है कि यदि इस प्रकार असहयोग आन्दोलन द्वारा अहिंसाका निरन्तर प्रचार न किया गया होता तो भारतमें और भी भयंकर और व्यापक हिंसात्मक कार्रवाइयां होतीं। मेरे इस उत्तरसे जो शंकाएँ उठ सकती हैं, मैं उनको भी पूरी तरह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ, ताकि मेरी स्थिति बिल्कुल साफ हो जाये।

अब धरना देनेका प्रश्न ही लीजिए। मैं समझता हूँ, एक काफी शक्तिशाली लोकमत इसके खिलाफ है। यदि अनुभवसे आपको लगे कि वो प्रतिपक्षी शक्तियोंके आमने-सामने होनेपर किसी-न-किसी रूपमें उपद्रव अवश्य होगा, तब भी क्या आप चाहेंगे कि धरना देना जारी रहे?

जबतक धरना देनेवाले स्वयं कोई हिंसा नहीं करते तबतक तो यह जारी रहेगा। शराब बेचनेवाले या शराब पीनेवाले लोग जो हिंसा कर सकते हैं, उसका विचार मैं नहीं करूँगा। ऐसा ही एक तीसरा पक्ष है सरकार। बिहार प्रान्तमें कहीं-कहीं तो लोगोंको मजिस्ट्रेटने अपने पाससे कुछ पैसे दे दिये और कहा कि 'जाओ शराब पियो, क्योंकि यह तो तुम्हारा जन्मसिद्ध अधिकार है।" इसलिए इस प्रकारकी हिंसाकी में तबतक कोई परवाह नहीं करूँगा जबतक अहिंसाकी प्रतिज्ञासे बँधा पक्ष अपने सिद्धान्तोंसे विचलित नहीं होता। हाँ, यदि वह पक्ष अपने सिद्धान्तोंसे च्युत हो जायेगा तो जरूर ही धरना देनेका कार्य बन्द कर दिया जायेगा।

फिर विदेशी वस्त्रोंके बहिष्कारका सवाल है। इस सम्बन्धमें मुझको यह मालूम हुआ है कि बम्बई में जो भारतीय माल आता है, उसका दाम बढ़ गया है। यदि विदेशी मालका बहिष्कार इसी तरह जारी रहा तो खुद मुझे ऐसा लगता है कि भारतमें बने मालका मूल्य और बढ़ जायेगा| यदि मूल्य बढ़ा, तो क्या इसका आपके आन्दोलनपर प्रभाव पड़ेगा ?

इसका मेरे आन्दोलनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि यहाँ सवाल, दरअसल मिलोंका नहीं है। मैं बार-बार जनताको यही समझानेका प्रयत्न करता रहा हूँ कि स्वदेशीका वास्तविक अर्थ है अपना सामान घरमें बनाना। इसलिए मैं यह चाहता हूँ कि जनता मिलके बने हुए मालकी परवाह न करे।

हिन्दुस्तानी मिलोंकी भी नहीं ?

हाँ, उनकी भी। वैसे तो अभी मैं हिन्दुस्तानी मिलोंका बहिष्कार नहीं कर रहा हूँ क्योंकि इसकी आवश्यकता नहीं है। लेकिन यदि जनता हिन्दुस्तानी मिलोंके ही भरोसे बैठ जायेगी तो मैं इनका भी बहिष्कार करूंगा, क्योंकि इनसे अन्तिम प्रश्न हल नहीं होता। मुझे मालूम है कि स्वदेशीका सन्देश अभी लोगोंने नहीं समझा है। निश्चय ही अभी सभी कार्यकर्त्ताओंने इसको पूरी तरह ग्रहण नहीं किया है, आलोचकोंकी तो बात ही क्या।