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भेंट : 'डेली एक्सप्रेस' के प्रतिनिधिको

आपका अभिप्राय क्या भारतीय मिलोंके बने हुए वस्त्रोंके उपयोगका भी कतई समर्थन न करनेका है ? यहाँ एक हिन्दुस्तानी मिलमें आजकल हड़ताल चल रही है, जिसमें पाँच-छ: हजार कर्मचारी काम छोड़कर निकल आये हैं। क्या आपके ही कार्यक्रमके अनुसार यह सम्भव नहीं है कि उन सबसे फिर मिलमें वापस जानेका आग्रह न करके उनमें से अमुक संख्याको करघे दिये जायें ?

यह तो मैं कर रहा हूँ। असम-बंगाल रेलवेमें हड़ताल[१] करनेवालोंके लिए मैंने इसी प्रकारका बन्दोबस्त किया है। उन लोगोंने असमके चाय बागानके अन्यायपीड़ित कुलियोंके प्रति सहानुभूति प्रकट करनेके लिए हड़ताल की थी। सरकारने उनपर जो अन्याय किया था उसका कोई परिशोधन न करके उनके साथ दुर्व्यवहार जारी रखा है। यदि मैं उन सब हड़तालियोंको असम-बंगाल रेलवे तथा स्टीमर कम्पनियोंके हड़तालियोंकी तरह कामपर लौटने से रोक सका तो रोकूंगा और कांग्रेस कमेटीको यह सलाह दूंगा कि प्रत्येक हड़तालीको एक चरखा, कुछ हड़तालियोंके बीचमें एक करघा, तथा उनको सब प्रकारकी सुविधा देनेके लिए उनकी एक बस्तीका बन्दोबस्त कर दिया जाये। जब मैंने सुना कि कुछ मिलोंमें औरतोंने हड़ताल की है, तब उनको भी मैंने यही सन्देशा भेजा। हम महिला मजदूरोंकी संख्या घटानेका प्रयत्न कर रहे हैं।

कर्मचारियोंको जैसी हालत में काम करना पड़ता है, आपका विरोध सिर्फ उससे है, या आप पश्चिमी यन्त्रोंके प्रवेशका विरोध करते हैं? यदि सभी हिन्दुस्तानी मिलोंकी अवस्था एक हदतक सुधर जाये और कर्मचारियोंके रहनेके लिए अच्छे मकान बनाये जायें और उनको सन्तोषजनक मजदूरी भी दी जाये तब भी क्या आप मिलमें बने हुए वस्त्रोंके उपयोगका विरोध करेंगे ?

हाँ, मैं विरोध करता रहूँगा, क्योंकि मैं पश्चिमी यन्त्रोंके प्रति वैर-भावसे विरोध नहीं करता। इस विषय में पश्चिम और पूर्वका तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता। पश्चिम और पूर्वका प्रश्न मेरे मनमें बराबर बना रहता है, लेकिन यन्त्रोंके सम्बन्धमें आपने जैसा सवाल पूछा है, उसका खयाल करते हुए मैं यह कहूँगा कि जिस तरह मैं यह नहीं चाहता कि खाना बनानेका काम सिर्फ कुछ होटलोंमें ही हो, उसी तरह मैं यह भी नहीं चाहता कि कपड़े बनानेका काम चन्द लोगोंके हाथमें रहे। हिन्दुस्तान के करोड़ों आदमी पहले कमसे कम आठ घंटे किसी अच्छे तथा लाभदायक कार्य में लगाते थे। लेकिन अंग्रेजी शासनका आज यह दुष्परिणाम हुआ है कि दो करोड़से ज्यादा मनुष्य सालमें छः महीने मजबूरन बेकार रहकर बिताते हैं, हालांकि मैं जानता हूँ कि यह स्थिति आये, ऐसा कोई इरादा अंग्रेजोंका नहीं था।

यदि भविष्य में उपद्रव नहीं रोके जा सके तो क्या आप जिस तरह पिछले साल आपने सविनय अवज्ञा आन्दोलनको[२] स्थगित कर दिया था, उसी तरह असहयोग आन्दोलनको भी स्थगित कर दीजिएगा ?

२१-८
 
  1. देखिए “भाषण : चटगाँवमें, रेलवे कर्मचारियोंके समक्ष", ३१-८-१९२१।
  2. देखिए खण्ड १५ पृष्ठ संख्या २५१-५२ और ४८३-६।