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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मुझे खेद है कि इस बार मैं वैसा नहीं कर सकता। उस समय सविनय अवज्ञा आन्दोलन एक विशेष कानूनके विरुद्ध चलाया गया था। असहयोग आन्दोलन तो एक पूरी शासन-पद्धतिके विरुद्ध है, अतएव इसको स्थगित करना मेरे लिए सम्भव नहीं है। आन्दोलन स्थगित कर दूंगा, ऐसा कह सकना भी मेरे लिए सम्भव नहीं है, क्योंकि यह एक विशाल आन्दोलन है और इसमें बड़े-बड़े खतरे मोल लेने हैं ताकि जो सबसे बड़ा खतरा है, अर्थात् इस शासन प्रणालीका जारी रहना, उसे खत्म किया जा सके।

यदि भारतको ब्रिटिश सरकार अधिराजत्वका दर्जा देने को तैयार हो तो ऐसी किसी प्रस्तावित व्यवस्था की, आपके खयालसे, क्या विशेषताएँ होनी चाहिए ?

ब्रिटिश सरकार अधिराजत्वका दर्जा देने को तैयार हो, तो मैं ऐसी किसी व्यवस्था के मार्ग की दो बाधाएँ हटानेपर अवश्य आग्रह करूँगा, अर्थात् खिलाफत और पंजाब के सवाल|

जिस तरह इंग्लैंड तथा फ्रांसने साइलेशियाके बारेमें मंजूर किया, उसी तरह यदि खिलाफतका पूरा प्रश्न भी पंच-फैसलेके लिए राष्ट्रसंघको सौंप दिया जाये तो क्या आप उसके फैसलेको स्वीकार करेंगे ?

मैं ऐसा नहीं कर सकता, क्योंकि यह तो समस्यासे सीधी तरह निबटना नहीं होगा। मुझको मालूम है कि इस बातका फैसला श्री लॉयड जॉर्जपर[१] निर्भर है। श्री लॉयड जॉर्ज इस मामलेमें उसी हदतक जा सकते हैं जिस हदतक राष्ट्र उन्हें जाने देगा। मैं यह नहीं मानता कि श्री लॉयड जॉर्ज जानबूझकर यह शरारत कर रहे हैं। वे ब्रिटिश साम्राज्य के प्रतिक्रियावादी तत्त्वोंके जालमें फँस गये हैं।

लेकिन यदि इस विवादको राष्ट्रसंघको सौंप दिया गया तब तो उसपर उनका कोई वश नहीं रह जायेगा ?

हाँ, लेकिन राष्ट्रसंघकी कार्यवाहीको तो वे तब भी प्रभावित कर सकेंगे। इसका मैं एक उदाहरण देता हूँ। यदि प्रधान मन्त्री मेसोपोटामियासे सब फौज हटाना चाहें तथा उससे कोई सम्बन्ध न रखना चाहें तो उन्हें इससे कौन रोक सकता है ? मेसोपोटामिया और फिलिस्तीनका शासनादेश (मेंडेट) तो ब्रिटिश राष्ट्रके पास है। मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि जब वे निष्कपट हैं तो मेसोपोटामियामें बने रहने के लिए उनका इतना आग्रह क्यों है ?

क्या आप यह बात स्वीकार कर लेंगे कि राष्ट्रसंघके मेंडेट द्वारा विवादग्रस्त क्षेत्रोंको टर्की अधिकारमें कर दिया जाये ?

इसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन ऐसा करने से कई प्रकारकी कठिनाइयाँ उपस्थित होंगी। मेरा कहना यह है कि वह सम्पूर्ण प्रायद्वीप पूर्णरूपसे सिर्फ मुसलमानोंके नियंत्रण में रहे और उसपर किसी अन्य बड़ी शक्तिका प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूपसे कोई नियंत्रण न रहे और न टर्कीके ऊपर ही कोई दवाब रहे। यदि अरब-निवासी टर्कीसे कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहते हैं तो वे स्वयं इसका निपटारा लड़कर कर लें।

  1. ब्रिटिश राजनयिक; १९१६-२२ में इंग्लैंडके प्रधान मन्त्री।