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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पहली बात तो यह कि समस्त संसारमें अब विचारका परिवर्तन हो गया है। दूसरे, अफगानिस्तानमें अभी जो तैयारियाँ हो रही हैं वे सब वास्तवमें खिलाफतके समनमें हो रही हैं । जब खिलाफत के मामलेका फैसला हो जायेगा, तब अफगान लोगोंकी भारतपर निगाह नहीं रह जायेगी। जो लड़ाकू कबीले लूट-मार करके ही जीवन-यापन करते हैं, उन्हें अभी लाखों रुपया बतौर सहायताके दिया जाता है। मैं भी उन्हें कुछ आर्थिक सहायता देना चाहूँगा। जब चरखा भारतमें सुदृढ़ स्थान पा जायेगा, मैं उसका प्रचार अफगान-कबीलेमें भी करूँगा और इस तरह उसे भारतपर हमला करनेसे रोकूंगा। मेरा विश्वास है कि ये कबायली लोग भी अपने ढंगसे ईश्वर भीरु लोग हैं।

मोपलोंके उपद्रवका उल्लेख करते हुए श्री गांधीने आगे कहा :

इस उपद्रवका बुनियादी कारण अभीतक पूरी तरहसे मैं नहीं समझ सका हूँ। बस, इतना ही जानता हूँ कि इनके सामने उत्तेजनाका कारण -- बहुत बड़ा कारण -- खड़ा किया गया था। मेरा खयाल है, वह कारण था मसजिदको घेर लेना। हिन्दुओंके इतने ज्यादा घरोंको क्यों लूटा गया, यह मैं नहीं जान पाया हूँ। जब मैं कलकत्ते में था तो मुझे पक्की खबर लगी थी कि जबर्दस्ती धर्म-परिवर्तनकी कुल तीन वारदातें हुई हैं। लेकिन अब मुझे मालूम हुआ है कि इस किस्म के कुछ और मामले कांग्रेस कमेटी को मालूम हुए हैं। यह बड़े दुःखकी बात है। मोपलोंके उपद्रवसे हम बहुत पिछड़ गये हैं, लेकिन मैं नहीं समझता कि इसका हिन्दू-मुसलमानोंकी एकतापर कोई गम्भीर असर पड़ सकता है।

इससे यह साफ मालूम पड़ता है कि अहिंसावादी असहयोगियोंने कितना बड़ा काम अपने कन्धेपर उठाया है। ऊपरसे देखनेवालेको ऐसा लग सकता है कि आजकल हिंसा या शक्तिका बिना कुछ प्रयोग किये इस तरहके उपद्रवकारी तत्त्वोंको नियन्त्रणमें नहीं रखा जा सकता। इसको मैं नहीं मानता और यही कारण है कि स्वदेशी कार्यक्रमको मैंने एक अनिवार्य शर्त के रूपमें प्रधान स्थान दिया है। यदि स्वदेशीका प्रचार हो गया तो मेरे खयालसे, उतने ही से इतनी शान्ति और प्रेम उत्पन्न हो जायेगा जिससे हिन्दुस्तानकी काया पलट जायेगी।

जहाँतक मोपलोंका प्रश्न है उन्होंने तो कपड़ा बनानेके बदले हथियार बनाये हैं?

लेकिन इससे तो ब्रिटिश शासकोंका ही दोष प्रकट होता है कि उन्होंने इन झगड़ालू जातियोंको वश में करके उन्हें शान्तिप्रिय बनाने के बजाय अपने क्षुद्र उद्देश्योंकी सिद्धि के लिए इनका उपयोग किया है। अंग्रेजी शासनके खिलाफ भविष्यके इतिहासकारको यह दुखमय बात लिखनी होगी। अब मैं नेपालियोंके भी सम्पर्क में आ रहा हूँ। वे बड़े शानदार लोग हैं। एक नेपाली बालिकासे मेरी भेंट हुई जो परसों ही मुझसे विदा हुई है। वह नेपालियोंमें अहिंसा के ज्ञानका प्रसार कर रही है, क्योंकि अभीतक उन्हें शान्तिप्रिय बनानेका कुछ भी प्रयत्न नहीं किया गया है।

यदि यह बात सच है कि ब्रिटिश सरकार मोपलोंको अहिंसक बनाकर नहीं रख सकी है तो क्या यह बात भी सच नहीं है कि आपका असहयोग आन्दोलन भी उन्हें शान्तिप्रिय बनानेमें विफल हुआ है ?