पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/१५

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नौ

सरकार ताकत आजमानेपर तुली हुई थी। बंगाल, उत्तरप्रदेश, पंजाब और दिल्ली में स्वयंसेवकोंके संगठनोंको गैरकानूनी करार दिया गया, राष्ट्रीय अखबारोंपर प्रतिबन्ध लगा दिया गया और लाला लाजपतराय, मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू-जैसे राष्ट्रीय नेताओं के साथ-साथ अहमदाबादमें होनेवाली आगामी कांग्रेस अधिवेशनके मनोनीत अध्यक्ष चित्तरंजन दास भी गिरफ्तार कर लिये गये। गांधीजीने देखा कि यह तो एक चुनौती है और उन्होंने लोगोंको यह चुनौती स्वीकार कर लेनेके लिए कहा। २९ अक्तूबरको अहमदाबाद में बोलते हुए उन्होंने जनतासे प्रश्न किया : "अब हमारे सामने पूरे दो महीने भी नहीं रह गये हैं। दिसम्बरकी २५ तारीखको कांग्रेस अधिवेशन शुरू होगा। अगर उस समय तक हम स्वराज्यके झण्डेको न फहरा सके, तो कांग्रेस अधिवेशनको बुलाने का क्या अर्थ है" (पृष्ठ ३७७)।

अहमदाबाद के कांग्रेस अधिवेशनकी तैयारियोंके सिलसिले में गांधीजीने 'नवजीवन' में (पृष्ठ ५०-५२, १४८-४९) लेख लिखकर छोटी-छोटी बातोंके विषयमें भी जो दिशादर्शन किया, उससे गांधीजीकी व्यावहारिक दृष्टि और तफसीलके प्रति जागरूकताका बड़ा अच्छा उदाहरण सामने आता है। उन्होंने बताया कि पाखाने किस तरह बनेंगे, पेशाब-घर कैसे और कहाँ-कहाँ होंगे; पीनेका पानी, बिजली, भाषावार रसोईघर आदि बीसियों बातोंपर उन्होंने प्रबन्धकोंका मार्गदर्शन किया --और सो भी उस समय जब वे देशकी बड़ी-बड़ी समस्याओंको लेकर अत्यन्त व्यस्त थे । एक दूसरे सन्दर्भ में उन्होंने अखबारों में प्रकाशित भाषणोंके विवरणोंके प्रति लोगोंको सावधान किया : "अधिकसे- अधिक सद्भावना रखते हुए भी संवाददाता मेरे भाषणोंकी बिलकुल सही रिपोर्ट कदाचित् ही दे पाये हैं। दरअसल सर्वोत्तम बात तो यह होगी कि जबतक भाषणोंके विवरण स्वयं वक्ताओंको न दिखा लिये जायें, तबतक वे अखबारोंमें प्रकाशित हो न हों। अगर इस सीधे-सादे नियमका पालन किया जाये, तो बहुत-सी गलफहमियाँ टाली जा सकती हैं" (पृष्ठ ५६४) ।

इस खण्ड में संगृहीत सामग्रीका सम्बन्ध यद्यपि राजनीतिक समस्याओंसे अधिक है --और यह स्वाभाविक भी है, किन्तु इसमें ऐसी सामग्री भी पर्याप्त परिमाण में है जो गांधीजी के व्यक्तित्व के दूसरे पहलुओंको भी सामने रखती है। असमके दौरेका उनके द्वारा लिखा हुआ वर्णन (पृष्ठ ५३-५८, ८६-९३) स्पष्ट करता है कि गांधीजीकी दृष्टि प्रकृति के सौन्दर्यको कितने प्रकृत भावसे ग्रहण कर सकती थी और वे उसके सम्पर्क में आकर कोमलताके भावोंसे किस तरह भर उठते थे और आनन्द-विभोर हो जाते थे। उसी विवरण में हम यह भी देखते हैं कि मानव स्वभावकी सादगी उन्हें किस तरह छूती थी। बारीसालमें "पतित बहनों" की सामाजिक समस्याने तो उन्हें लगभग विचलित कर दिया था। पुरुषने स्त्रीको जिस अत्याचारका शिकार बनाकर रखा है, उसका विचार करते हुए उनका सिर लज्जासे झुक गया। ज्यों-ज्यों इन बहनोंका चित्र मेरी आँखों के आगे सजीव होता है, त्यों-त्यों मुझे खयाल आता है कि अगर ये मेरी ही बहनें या लड़कियाँ होतीं तो --? और 'होतीं तो' क्यों, हैं ही" (पृष्ठ ९६) । हिन्दू धर्मके बारेमें उन्होंने एक परिपूर्ण वक्तव्य दिया जिसमें उन्होंने उत्कृष्ट प्रबन्धकारों-जैसी मनोहारिणी स्पष्टवादिताके साथ यह दर्शाया कि वे उसपर इतने