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भेंट : 'मद्रास मेल' के प्रतिनिधिको

देश में लाखों करोड़ों लोग ऐसे हैं जो प्रत्यक्ष रूपसे आपके प्रभावमें नहीं हैं, लेकिन जो अखबारों और सभाओंके जरिये असहयोगके बारेमें पढ़ते और सुनते हैं। इन लोगों को यही माननेको कहा जाता है कि देशमें जो भी बुराइयाँ हैं वे सब वर्तमान सरकारके कारण हैं। इन बुराइयोंको किस प्रकार दूर किया जाये, यह बताये बिना उनका जिक्र करते रहना, सत्तारूढ़ लोगोंके प्रति लोगोंमें दुर्भाव उत्पन्न करना है। क्या आप ऐसा नहीं सोचते कि असहयोग आन्दोलनका सुविचारित उद्देश्य भी यही है ?

यह प्रश्न ऐसा मानकर चलता है कि कोई भी व्यक्ति वास्तवमें अहिंसाके विषयमें लोगोंको नहीं समझाता।

आप इसे अपनी प्रशंसा-मात्र न समझें तो मैं समझता हूँ कि आप मेरी इस बात से सहमत होंगे कि जहाँ कहीं किसी प्रकारका कोई ऐसा झगड़ा उत्पन्न होता है जो असहयोग के सिद्धान्तके प्रसारके कारण उत्पन्न हुआ माना जाता हो वहाँ शान्ति स्थापित करनेके लिए गांधीको आवश्यकता होती है।

मैं यह सोचकर अपनी तारीफ नहीं करूँगा कि हर जगह शान्त वातावरण बनाने के लिए मेरी निजकी उपस्थिति जरूरी हुई, क्योंकि मैं जानता हूँ कि ऐसे बहुतसे लोग हैं जो उस प्रकारका वातावरण बना सकें और उसे कायम भी रख सकें। मेरा पक्का विश्वास है कि यदि सरकारने श्री याकूब हसनको मलाबार जानेकी अनुमति दे दी होती, तो वहाँ बादमें जो कुछ हुआ वह रोका जा सकता था और मुझे पूरा विश्वास है कि यदि सरकार मुहम्मद अलीको वाल्टेयरमें न पकड़ती बल्कि उन्हें मलाबार भेजती, तो वे पूर्ण शान्ति स्थापित कर सकते और बहुत-सी जानें बच जातीं तथा बहुतेरे हिन्दू परिवार धर्मान्ध मोपलाओंके उन्मादसे बच गये होते।

परन्तु आपके खयालसे श्री मुहम्मद अलीकी गिरफ्तारीका आपके आन्दोलनपर क्या असर पड़ेगा ? क्या आपके मुसलमान अनुयायियोंको यह हिंसाके लिए प्रेरित करेगा ?

मैं आशा करता हूँ कि नहीं करेगा; और मेरा विश्वास है कि यदि भारत अहिंसात्मक रहता है, और साथ ही दृढ़ भी तो मैं जानता हूँ कि स्वराज्य करीब है। यह देखते हुए कि सरकार जनताकी राय नहीं लेना चाहती, सरकारके पास केवल एक रास्ता रह जाता है और वह यह कि वह उन लोगोंको समाप्त कर दे जो जनताकी रायका, भले कुछ समय के लिए ही, प्रतिनिधित्व करते हैं।

आप जो कह रहे हैं, सरकार क्या वही कर रही है ?

इस बारेमें मेरे मन में कोई सन्देह नहीं है।

परन्तु जबतक आपके आदर्शके अन्तर्गत ये बड़ी-बड़ी शर्तें बनी हैं, तबतक आप लोगोंको ऐसी आशंका करनेसे नहीं रोक सकते कि आपकी तमाम नेकनीयतीके बावजूद हिंसा अवसर आ सकते हैं क्योंकि उनके अन्दर आप जैसी दार्शनिक वृत्ति या आत्मसंयमका दृढ़संकल्प नहीं है ?

हाँ, खतरा तो हमेशा है, और कोई भी सुधारक अबतक बड़े खतरोंके बिना सुधार कार्य पूरा नहीं कर पाया है।