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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जब इतने बड़े खतरे मौजूद हैं, तो क्या आपको समझसे सरकार द्वारा ऐसे तरीके अपनाना उचित नहीं है, जो उसकी बुद्धिसे जरूरी हैं ?

यह देखते हुए कि सरकार जनताकी न्यायपूर्ण आकांक्षाओंका विरोध कर रही है, सरकारके कार्योंको किसी तरह उचित नहीं कहा जा सकता।

परन्तु क्या यह मामला ऐसा नहीं है जिसपर खुद भारतीयोंमें बड़ा मतभेद है?

मेरा उत्तर यह है कि खिलाफत और पंजाब के बारेमें लोगोंकी माँगोंके सम्बन्धमें कोई मतभेद नहीं है। इसका उल्लेख मैं इसलिए करता हूँ कि यदि सरकारका कुछ भी इरादा खिलाफतकी माँगे पूरी करनेका होता तो वह मौलाना मुहम्मद अलीको कैद हरगिज न करती।

मलाबारके उपद्रवोंके बावजूद, क्या आप हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रति निराश नहीं होते ?

मेरे निराश न होने का सीधा-सा कारण यह है कि कोई भी समझदार मुसलमान, चन्द मोपला लोगोंने जो भी किया है उसे ठीक नहीं मानता है। जब आपका मानवके बहुत बड़े-बड़े समूहोंसे वास्ता पड़ता हो तब ऐसी उम्मीद करना बहुत ज्यादा होगा कि एक भी व्यक्ति कोई गलती नहीं करेगा।

इसी बातको लेकर आपके असहयोगका विरोध किया जाता है।

हाँ, लेकिन क्या सरकारने अपने शब्द भण्डारसे 'खतरा' -- यह शब्द मिटा दिया है

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, १६-९-१९२१


५३. भाषण : मद्रासमें

१५ सितम्बर, १९२१

"स्वदेशी" पर महात्मा गांधीका भाषण सुननेके लिए कल सायंकाल साढ़े पाँच बजे प्रेसिडेंसी कालेजके सामने समुद्रतटपर विशाल सभा हुई।...

श्री एस० कस्तूरीरंगा आयंगारके[१] प्रस्तावपर श्री याकूब हसनको सभापति बनाया गया।

महात्मा गांधी बोलनेको उठे तो लोगोंने तीव्र हर्षध्वनिसे उनका स्वागत किया। महात्माजी घंटे-भरसे अधिक समयतक बोले और बहुत स्पष्ट तथा खनकती हुई आवाजमें। लोगोंने उनका भाषण बड़े ध्यानसे सुना। भाषण अंग्रेजीमें दिया गया, किन्तु शुरूमें

  1. मद्रासके कांग्रेसी नेता; सविनय अवज्ञा जाँच समितिके सदस्य; हिन्दूके सम्पादक।