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भाषण : मद्रासमें

ए० रामास्वामी आयंगार[१] और फिर श्री एस० सत्यमूर्ति[२] एक-एक वाक्यका अनुवाद करके बोलते गये। महात्माजीने कहा :

सभापति महोदय और मित्रो,

सदाकी भाँति में आपसे क्षमा माँगना चाहूँगा कि शारीरिक दुर्बलताके कारण मैं खड़ा होकर नहीं बोल सकता। पीछेके सभी श्रोताओंसे मैं कहना चाहता हूँ कि यदि वे मेरी बातें सुनना चाहते हैं तो पूरी शान्ति बनाये रखें। और मैं समस्त श्रोताओंसे अनुरोध करूँगा कि वे न तो ताली बजायें और न “शर्म-शर्म" चिल्लायें। सितम्बरमें राष्ट्रीय कांग्रेसने नागपुरमें देशके सामने जो कार्यक्रम प्रस्तुत किया, यदि आप उसे सचमुच पूरा करना चाहते हैं, तो विश्वास करें कि करतलध्वनि करके या "छि: छि:" कहकर आप उसे पूरा नहीं कर सकते। अब हमें प्रदर्शन से बचकर पहलेसे कहीं अधिक गम्भीरतासे अपने काममें जुट जाना चाहिए। अपने कार्यक्रमको पूरा करने तथा स्वराज्यकी स्थापना करनेके लिए हमारे पास अब केवल कुछ महीने का ही समय है। खिलाफत और पंजाब के अन्यायोंका परिशोधन कराने के लिए समयकी मानवीय दृष्टिसे, हमारे पास बहुत ही कम समय है। लेकिन खुशीकी बात यह है कि प्रतिदिन अपने चारों ओर मुझे इस बातके संकेत मिलते हैं कि ईश्वर हमारे साथ है। मैं जानता हूँ और निःसन्देह आप भी जानते हैं कि हम भले ही मानवीय दृष्टिके अनुसार सबसे कमजोर दिखते हों, फिर भी ईश्वर चाहे तो हमें सफल बना सकता है।

मैं ऐसा मानता हूँ कि वाल्टेयरमें मौलाना मुहम्मद अलीकी गिरफ्तारी भी हमारे लिए वरदान बनकर आई है। ईश्वर ही जानता है कि जो भी सच्चे और वैध तरीके किसी असहयोगी के लिए उपयुक्त हैं, उन सभी तरीकोंसे मौलाना मुहम्मद अलीने, उनके भाईने और मैंने इस बातकी हरचन्द कोशिश की कि वे जेल न जायें। इस सीधे और सँकरे पथपर चलने के लिए एक बहादुर आदमी जो कुछ कर सकता है, मुहम्मद अलीने वह सब किया। और यह तो वाइसराय महोदय ही बता सकते हैं कि उस समय जब कि वे शान्ति और सद्भावना यात्रापर निकले हुए थे, ऐसी कौन-सी नई स्थिति उत्पन्न हो गई थी जिससे उनकी गिरफ्तारीका औचित्य सिद्ध होता है। अलीबन्धुओंके हस्ताक्षरसे जारी किये गये उस प्रसिद्ध और बहुचर्चित वक्तव्यके[३] बादसे मौलाना मुहम्मद अली लगभग बराबर मेरे साथ ही रहे हैं। मैं अपने श्रोताओंको, और इन श्रोताओंके जरिये समस्त भारतको यह विश्वास दिलाता हूँ कि मौलाना मुहम्मद अलीने खुदाके नामपर भारतसे जो यह वादा किया था कि वे हिंसा नहीं भड़कायेंगे, उस वादेसे वे तिल भर भी नहीं हटे हैं। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि निजी बातचीतमें या खुले तौरपर, वक्तन-फवक्तन मौलाना मुहम्मद अलीने इस बातपर जोर दिया कि भारतके लोगोंके लिए अहिंसाका पूरी तौरपर

  1. पहले मद्रासके तमिल दैनिक स्वदेशमित्रन और बादमें हिन्दू के सम्पादक; १९२६-२७ में कांग्रेसके महा सचिव; विधान सभाके सदस्य।
  2. १८८७ - १९४३; मद्रासके एक प्रसिद्ध कांग्रेसी नेता और वक्ता।
  3. देखिए खण्ड २०, पृष्ठ ९२।