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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पालन करना जरूरी है। उनसे जो लोग मिले उन्हें और जिन बहुत सारी सभाओं में वे बोले, वहाँ लोगोंको उन्होंने यही समझाया है कि स्वराज्य हो, या खिलाफत अथवा पंजाब विषयक अन्यायका परिशोध -- हमारी सफलताकी एकमात्र और अनिवार्य शर्त यही है कि भारतके लोग पूरी तरह अहिंसाकी भावना बनाये रहें। लेकिन अलीबन्धु कायर नहीं हैं। अगर किसीकी ऐसी कल्पना या ऐसा विचार रहा हो कि उनके "वक्तव्य" का अर्थ उनके रवैये या उनकी भाषामें कोई परिवर्तन है, तो यह उसका भ्रम ही था। इन दोनोंसे ज्यादा बहादुर और सच्चे लोग मेरे देखनेमें कभी नहीं आये। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि ये दोनों भाई बाहर-भीतर हर तरफसे शालीन और ईमानदार हैं। लेकिन मैं यह भी स्वीकार करता हूँ कि वे कठोर भाषाका प्रयोग कर सकते हैं, और इसका प्रयोग करना और खरी बात कहना उन्हें बहुत प्रिय है। (श्रोताओंमें दबी हँसीकी आवाज ) वे दोनों खुद बहादुर और शक्तिवान हैं और अपने श्रोताओंमें भी अपनी थोड़ी-बहुत बहादुरी और शक्ति पैदा करनेकी उन्होंने सफल कोशिश की है। लेकिन अपने अनुयायियोंमें अपनी जैसी शक्ति और बहादुरीकी भावना उत्पन्न करने के साथ-साथ ही उन्होंने अपने अनोखे ढंगसे अपनी शक्ति-भर खुदको अनुशासित भी किया है। मेरा दृढ़मत है कि इन दोनों भाइयोंने समस्त भारतमें अहिंसाका वातावरण बनाये रखनेके लिए जितना प्रयास किया है उतना मुसलमानों में अन्य किसीने भी नहीं किया है; और इसीलिए अगर मैं सरकारपर यह आरोप लगाऊँ कि मौलाना मुहम्मद अलीको गिरफ्तार करके उसने खिलाफतको ही गिरफ्तार किया है या करनेकी कोशिश की है तो उसे इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

वैसे तो सरकार खुद ही शक्तिशाली है, फिर भी अगर वह चाहती तो अलीबन्धुओंको और मुझे उपद्रवग्रस्त क्षेत्रमें जानेका न्यौता दे सकती थी, कि हम उस उपद्रवग्रस्त क्षेत्र में शान्ति सुव्यवस्था स्थापित करें। मुझे विश्वास है कि इस तरह बहुत-से निर्दोष लोगों की जान बच गई होती। मुझे विश्वास है कि बहुतसे हिन्दू परिवारोंको बरवादीसे बचाया जा सकता था। मुझे माफ किया जाये, लेकिन मैं सरकारपर फिर आरोप लगाता हूँ कि वह लोगोंको हिंसाके लिए भड़काना चाहती थी। जिस प्रकारकी शासन-पद्धतिके अन्तर्गत हमपर शासन किया जा रहा है उसमें शक्तिशाली, बहादुर और सच्चे आदमियोंके लिए कोई जगह नहीं है। सरकार के पास ऐसे आदमियोंके लिए अगर कहीं कोई जगह है तो वह जेल ही है। मलाबारमें जिन लोगोंको इतना अधिक दुःख भोगना पड़ा है, मेरा हृदय उनके लिए रोता है। मैं जानता हूँ कि एक जमानेसे हमारे मोपला भाई अनुशासनविहीन जीवन के आदी रहे हैं, और इसलिए उनपर पागलपन सवार हो गया है। मैं जानता हूँ कि उन्होंने खिलाफत और अपने देशके प्रति एक भयंकर अपराध किया है। समस्त भारतके ऊपर आज इस बातकी जिम्मेदारी है कि वह गम्भीरसे-गम्भीर उत्तेजनाके बावजूद अहिंसा बरते। हिन्दू परिवारोंकी जो तबाही हुई है उससे मैं साफ देखता हूँ कि अहिंसात्मक असहयोगका कल्याणकारी सन्देश उस क्षेत्रमें मोपला परिवारोंतक नहीं पहुँच सका था। और मेरे पास ऐसे प्रमाण हैं, जिनपर सन्देह करनेका कोई कारण नहीं है, कि जिन भागों में हमारे मोपला देशभाइयोंने पागलपन दिखाया, वहाँ असहयोग-