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भाषण : मद्रासमें

तो मेरा दिल टूट जाता है। बेगम साहिबाका लालन-पालन भी उतने ही कोमल ढंगसे हुआ है जितने कोमल ढंगसे मेरी इन बहनोंका। लेकिन इसके बावजूद वे भारी खद्दर धारण करनेमें लज्जा नहीं, बल्कि गर्वका अनुभव करती हैं। और मेरी प्यारी बहनो, यदि आपने मेरी बातें ध्यानसे सुनी हैं तो मुझे आशा है कि आप कलसे अपना मन बदल लेंगी। और विदेशी रेशमी वस्त्र और विदेशी साज-सज्जाको फेंककर शुद्ध तथा पवित्र खद्दर ही धारण करने लगेंगी। और जहाँतक पुरुषोंकी बात है, मोलाना मुहम्मद अली और मौलाना शौकत अली, दोनों भाई, भले ही पसीने से लथपथ हो जायें, किन्तु दिन-रात खद्दरके ही कपड़े पहने रहते हैं। मौलाना शौकत अलीके लिए तो और भी परेशानी है, क्योंकि वे डील-डौलमें अपने भाईसे ज्यादा मोटे और भारी-भरकम हैं। इसलिए फिर जब मैं एक ओर इन दोनों भाइयों के बारेमें सोचता हूँ और दूसरी ओर इस विशाल श्रोता-समुदायपर नजर डालता हूँ तो मेरा दिल उसी तरह टूट जाता है| यहाँ आप लोग जैसी भावनाका प्रदर्शन कर रहे हैं, उस भावनासे तो स्वराज्य नहीं मिल सकता। देश आपसे अपेक्षा करता है कि आप अपने विदेशी और सुन्दर बारीक वस्त्र छोड़ दें, विदेशी कपड़ेसे बनी अपनी टोपियाँ और विदेशी सूतसे बनी बारीक धोतियाँ भी छोड़ दें। देश प्रत्येक मर्द, औरत और बच्चेसे, यह अपेक्षा रखता है कि उसे जितना समय मिले, उसमें वह सूत काते। जबतक चरखेका शान्तिपूर्ण और पवित्र सन्देश भारतके प्रत्येक घरमें नहीं पहुँच जाता तबतक अहिंसात्मक तरीकोंसे स्वराज्य नहीं प्राप्त किया जा सकता।

इस जगह सभाको दस मिनट के लिए स्थगित कर दिया गया ताकि मुसलमान श्रोतागण शामकी नमाज पढ़ सकें। इस बीच सभामें पूरी शान्ति बरती गई। नमाजके बाद महात्माजीने अपना भाषण जारी करते हुए कहा :

मेरे लिए चरखा प्राचीन समृद्धिको पुनर्स्थापना और आत्म-विश्वासका प्रतीक है। चरखा इस बातकी सबसे खरी कसौटी है कि हमने अहिंसाकी भावनाको कहाँतक आत्मसात् किया है। चरखा एक ऐसी चीज है जो हिन्दू और मुसलमानोंको ही नहीं, बल्कि भारतमें रहनेवाले अन्य धर्मावलम्बियोंको भी एक सूत्रमें बाँध देगा। चरखा भारतीय नारी के सतीत्वका प्रतीक है। मैं इस बातकी साक्षी देता हूँ कि चरखेके अभाव में हमारी हजारों गरीब बहनें लज्जा और पतनका जीवन अपनानेको विवश हैं। चरखा विधवा नारीका सखा है। और यह चरखा ही है जिससे भारतके लाखों ग्रामवासियों के अपर्याप्त साधनोंकी पूर्ति होती थी। चरखा न जाने कितने लोगोंकी आत्मशुद्धिमें सहायक हुआ है। और हमारे घरोंमें चरखेका व्यापक रूपसे अपनाया जाना मेरी दृष्टिमें इस बातका निश्चित द्योतक होगा कि हमने अब दिमागको ही सब कुछ मान लेना बन्द कर दिया है। इसलिए मेरे लिए चरखा इस बातका द्योतक है कि जो लोग चरखा चलाते हैं वे शारीरिक श्रमकी सर्वोच्चताको स्वीकार करते हैं। हमने अछूत मानकर अभीतक जिनका तिरस्कार करनेका पाप किया है, चरखा उनके लिए सान्त्वनाका स्रोत है। चरखा ही वह चीज है जिसे भारतमें कहीं भी पतनके गर्त में पड़ी बहनें रोजी कमानेके एक सम्मान जनक साधनके रूपमें अपना सकती हैं। और