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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जब चरखा हमारे देश के घर-घरमें अपनी पक्की जगह बना लेगा तभी भारतके लिए व्यापक पैमाने पर सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करना सम्भव होगा। जब हमारा खून क्रोधसे उबल रहा हो, और जब हम उत्तेजित हों उस समय देशमें कानूनकी अवज्ञाका कोई आन्दोलन सविनय तो हो ही नहीं सकता। अगर हम इसी वर्ष मुक्ति पाने के उद्देश्यसे सारे भारतमें अहिंसाकी भावना भरना चाहते हैं तो चरखे के अलावा हमारी शुद्धिका और कोई उपाय नहीं है। आपको अपना तन ढकने के लिए बम्बई और अहमदाबादकी मिलोंपर निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि आपमें इतनी क्षमता, इतना आत्मसम्मान होना चाहिए कि आप अपने पवित्र हाथोंसे तैयार किये गये वस्त्र से ही अपना तन ढकनेपर आग्रह रखें। लेकिन मैं आशा करता हूँ कि इस श्रोतासमूहमें से कोई भी मेरी बातोंकी आड़ लेकर अपनी कमजोरी नहीं छिपायेगा, और न इनका प्रयोग श्रोताओंको मैं जिस तरह विदेशी वस्त्र पहने देख रहा हूँ, उसी तरह विदेशी वस्त्र पहनना जारी रखने के लिए करेगा। इसके विपरीत, अगर मेरी ही तरह आप भी ऐसा महसूस करते हों कि हमने पिछले दिसम्बर महीने में जो संकल्प किया उसे पूरा करने को हम एक पवित्र कर्त्तव्य-बन्धनसे बँधे हुए हैं तो आप ध्यान रखेंगे कि जबतक आप अपना पसीना बहाकर अपने लिए कपड़ा तैयार नहीं करते तबतक आप चैन नहीं लेंगे, भले ही तबतक आपको मद्रास की सड़कोंपर लँगोटी पहनकर ही क्यों न चलना पड़े। अलीबन्धु आपसे हड़तालकी अपेक्षा नहीं करते। वे यह भी नहीं चाहते कि आप सार्वजनिक सभाओं का आयोजन करके प्रदर्शन करें। वे आपसे जो चाहते हैं वह इतना ही कि आप एक निश्चित ढंगसे अपनी वीरता और उत्साह, निर्भीकता और सत्यपरायणता तथा अहिंसाका परिचय दें। वे चाहते हैं कि उनकी बात सुनने के लिए श्रोतासमूहमें शामिल होनेवाले स्कूली लड़कोंमें अगर उनके प्रति तनिक भी भाव और सम्मान हो तो वे उनका अनुरोध स्वीकार करें और उस सरकारकी स्कूलोंमें जाना बन्द कर दें जिसे उखाड़ फेंकनेके लिए वे कृतसंकल्प हैं। वे चाहते हैं कि जो कमजोर दिल खिताबयाफ्ता लोग, कौंसिलोंके सदस्य लोग और वकील असहयोगमें विश्वास तो रखते हैं लेकिन उनके पास जो कुछ है उसे छोड़नेका साहस नहीं रखते, वे अब उनके आवाह्नका उत्तर दें और बहादुरीके साथ उत्तर दें।

लेकिन ये खास वर्ग अपने कर्त्तव्यका अनुभव करें या नहीं, या अपने कर्त्तव्यका अनुभव करके वे अवसरकी माँग के अनुकूल आचरण करें या नहीं, लेकिन यहाँ एकत्र हुए हम लोगोंके लिए स्वदेशीका सन्देश अस्वीकार कर देनेका कोई कारण नहीं है। हम स्वराज्य कुछ खास वर्गोंके लिए नहीं, बल्कि आम जनताके लिए चाहते हैं, जिसमें अस्पृश्य तथा देशके दीनसे-दीन स्त्री-पुरुष भी शामिल हैं। ईश्वरकी कृपा है कि हमारी सेना ऐसी है जिसमें स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े, कोढ़ी-रुग्ण सभीको विशेष सुविधा प्राप्त स्थितिवाले लोगों के साथ-साथ उनके जैसा ही सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त है। कारण, क्या हमारा यह दावा नहीं है, क्या हमने हजारों मंचोंपर से यह नहीं कहा है कि वर्तमान सरकार शैतानकी सरकार है ? और क्या हम यह दावा नहीं करते कि हम एक असुर-राज्यके स्थानपर राम-राज्य स्थापित करनेका प्रयत्न कर रहे हैं ? और ईश्वरके राज्यमें क्या हममें से छोटेसे-छोटेको बड़ेसे-बड़ेकी बराबरीका दर्जा प्राप्त नहीं है?