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भाषण : मद्रासमें

इस लहराते सागरके तटपर ईश्वरके नामपर मैंने कई बार कहा है कि तमिल और तेलुगु लोगोंकी धार्मिक प्रवृत्ति में मेरा निश्चित विश्वास है क्योंकि दक्षिण आफ्रिकामें उनके साथ खाने-पीने, सोने-बैठने और कष्ट सहने का जो सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ उसमें मैंने ऐसा ही देखा। मैं आशा करता हूँ और ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि भावी इतिहासकारोंको ऐसा न लिखना पड़े कि द्रविड़ देशके लोग बातें तो ईश्वरके राज्यकी करते थे, लेकिन चल रहे थे शैतान-राज्यवाले तौर-तरीकोंपर। हम ऐसा न करें जिससे हमारे विरोधियोंका यह आरोप सही सिद्ध हो जाये कि अहिंसा और सत्यकी दुहाई देते हुए हम कई बार हिंसा और असत्यका आचरण करते हैं। जैसा कि तिलक महाराजने कहा है, स्वराज्य हमारा पुनीत और जन्मसिद्ध अधिकार है, खिलाफत हमारे मुसलमान देश भाइयोंके लिए एक पवित्र थाती है; और पंजाबके साथ किये गये अन्यायका परिशोध करना हमारा पावन कर्त्तव्य है। अब हम ऐसा न करें कि जिस सिद्धान्तको हमने पिछले वर्ष दो-तीन बार अपने धर्मकी तरह स्वीकार किया उसके साथ दगा करके हम अपने जन्मसिद्ध अधिकार, अपने धर्म और कर्तव्यसे विमुख हो जायें। हमने अपने सामने एक मानदण्ड रखा है और हमें उसपर दृढ़ रहकर अपने-आपको उसके योग्य सिद्ध करना है। अपने स्वीकृत सिद्धान्तके साथ दगा करके हम भावी पीढ़ियोंकी भर्त्सना के भागी न बनें।

अगले कुछ महीनों में हमें अवश्य ही बहुत उथल-पुथल, कष्ट, कारावास और ऐसी ही बहुत-सी अन्य बातोंका भी सामना करना पड़ेगा। सारी दुनियामें प्रभातके पहले अन्धेरा बहुत घना होता है, और मैं चाहता हूँ, आप अपनी आस्थाकी आँखोंसे प्रकाशकी उन किरणोंको देखें जो हमारे देशपर छाये इस घने अन्धकारको चीर कर आ रही हैं। और मैं इस महान् प्रान्तके नारी-पुरुष, सभीसे कहता हूँ कि आप सब अपने दायित्वका निर्वाह ऐसी ईमानदारी के साथ करें कि भावी पीढ़ियाँ कह सकें कि मद्रास प्रान्त अपना कर्त्तव्य पूरा करनेमें किसी भी प्रान्तसे पीछे नहीं था। मैं ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि वह हम सबको शक्ति और साहस दे, एक निश्चित संकल्प दे, जिससे हम अपने लक्ष्यतक पहुँच सकें।

बेगम साहिबा आपसे दो शब्द कहनेवाली हैं। कृपया उनकी बातोंको पूरे आदर और ध्यानसे सुनियेगा। उनके बाद मौलाना आजाद सोबानी बोलेंगे। वे एक बहुत बड़े मुल्ला हैं। जब केन्द्रीय खिलाफत समितिने, गत सितम्बर माससे बहुत पहले, असहयोग करने का फैसला अन्तिम रूपसे किया था, तब खिलाफत समितिने खिलाफतके सिद्धान्तका प्रतिपादन करने के लिए उन्हींको चुना था। इसलिए मुझे भरोसा है कि जितने धैर्य के साथ आपने मेरी बात सुनी है, उतने ही धैर्य के साथ उनकी बात भी सुनेंगे। अन्तमें आपसे मैं अनुरोध करूँगा कि आप सब किसी प्रकारकी नारेबाजी या प्रदर्शन आदि न करें -- सिर्फ इसी सभामें नहीं, बल्कि सभी सभाओंमें। अहिंसाके नियमका तकाजा है कि हमें निरर्थक प्रदर्शनों, चीख-पुकार और हाथ-पैर आदि पटककर अपना खून नहीं गर्म करना चाहिए। मैं अपने विस्तृत अनुभव के आधारपर यह कह रहा हूँ कि जब सभी लोग बातचीत कर रहे हों और शोर-गुल मचा रहे हों -- भले ही वे ऐसा स्नेह-वश ही क्यों न कर रहे हों -- तब सदा शान्ति बनाये रखना असम्भव हो

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