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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सज्जनो,

आज आप लोगोंसे यहाँ मिलकर मुझे बहुत खुशी हुई है। सौभाग्य से कपड़ा-व्यापारियोंसे मेरे बहुत ही मधुर सम्बन्ध रहे हैं। जैसा कि आप जानते हैं, बम्बई और कलकत्तामें उनके साथ मेरी कई बैठकें हुई हैं और भारत के विभिन्न भागोंमें दौरा करते समय मैंने सब जगह व्यापारी-समाजसे मिलनेका विशेष ध्यान रखा है। आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि इन सब स्थानोंमें इस महान् स्वदेशी आन्दोलनके प्रति उनमें पूर्ण सहानुभूति थी, जो कि उचित ही है। आपको यह जानकर भी खुशी होगी कि कलकत्ताको छोड़कर अन्य शहरोंके व्यापारी बहुत बड़ी संख्या में अब भविष्यमें विदेशी-वस्त्रका आयात बन्द करने को राजी हो गये हैं। मुझे मालूम है कि कलकत्ताके व्यापारियोंको कुछ कठिनाइयाँ अनुभव हुई हैं। उन्होंने यह सुझाव रखा है कि वे सिर्फ ३१ दिसम्बर तक ही विदेशी कपड़ेका आयात बन्द रखेंगे और आपस में अपने मौजूदा मालके साथ विदेशी सूतको बेचने या उसकी अदला-बदली करनेकी स्वतन्त्रता उन्हें होगी। मैं इस सुझावको स्वीकार नहीं कर सकता था क्योंकि मुझे लगा कि यह तो चालबाजी के सिवाय और कुछ नहीं है और उनकी बात मानकर मैं इन छिपे सौदोंमें उन व्यापारियों का एक अनिच्छुक सहायक बनता। इस तरहके आन्दोलनमें, जिसके शुद्ध और धार्मिक होने का हम दम भरते हैं, वास्तवमें गोपनीयता या लुक-छिपकर काम करनेके लिए कोई स्थान नहीं होता। इससे तो कहीं बेहतर यह होता है कि जो लोग विदेशी कपड़े का आयात बन्द नहीं कर सकते, बजाय इसके कि जाहिरा कुछ कहें और गुप्त रूपसे उसके सर्वथा विपरीत आचरण करें, वे निःसंकोच होकर साफ-साफ ऐसा कह दें और अपना व्यापार जारी रखें। परन्तु कलकत्ताके व्यापारी मेरी सहानुभूतिके पात्र हैं क्योंकि वे भारत-भर में सबसे ज्यादा विदेशी वस्त्र आयात करनेवाले लोग हैं। परन्तु आपको यह सुनकर खुशी होगी कि वे भी अब पहलेसे अधिक देशभक्तिपूर्ण रवैया अख्तियार कर रहे हैं। श्री जमनालालजीने, जो कलकत्तामें उन बड़े-बड़े व्यापारियोंके साथ बातचीत करने के लिए खास तौरपर रुके हुए थे, आज मुझे इस आशयका तार भेजा है कि उनमें से कइयोंने अब इस मामलेमें, राष्ट्रीय हितचिन्तन और विवेकशीलताका परिचय दिया है। इस प्रकार आप देखेंगे कि सारा भारत वास्तवमें स्वदेशी आन्दोलनका पक्ष लेता जा रहा है। और इसलिए इस आन्दोलनमें आपकी सहानुभूतिका आश्वासन पाकर मुझे प्रसन्नता हुई; और आपने अपने वक्तव्यमें जो वचन दिया है कि अब आगे से आप विदेशी कपड़ेका आयात नहीं करेंगे, यदि आप केवल इसीका पालन करें तो हम जिस उद्देश्यको पूरा करना चाहते हैं, वह बहुत हदतक पूरा हुआ ही समझिए। मैं जानता हूँ कि सारे भारतमें हमारे पास लगभग ४० करोड़के मूल्यका कपड़ा बिकने के लिए उपलब्ध है। इतनी बड़ी आबादीवाले भारतमें ४० करोड़ रुपयेकी कीमतका विदेशी कपड़ा खप जानेमें में कोई कठिनाई नहीं देखता, परन्तु इस मतसे मैं कदापि सहमत नहीं हो सकता कि जो माल आपके पास अभी पड़ा हुआ है वह साराका सारा भारत के बाहर नहीं जा सकता। जैसा कि आप जानते हैं, बहुत-सा विदेशी कपड़ा पुनः निर्यात किये जाने के लिए ही मँगाया जाता है। मुझे मालूम