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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पूरे स्वदेशी आन्दोलनकी जिम्मेदारी ले लेनी चाहिए तो क्या कोई असम्भव प्रस्ताव आपके समक्ष रखता हूँ ? अपने देशको आप अपने एजेंटों या गुमाश्तोंसे भर दें, इसके लिए क्या आपमें कोई बहुत विशेष बहादुरीकी जरूरत है? आप तो सिर्फ चरखे और हाथ करघे बाँट देंगे और भारतके हजारों लोगोंसे सूत इकट्ठा करेंगे तथा बेचेंगे और उस सूतसे भारत के लिए कपड़ा बुनवायेंगे। देश-भरमें सर्वत्र हाथकी कताई-बुनाईको सुसंगठित करना वास्तवमें आपका विशेष अधिकार और कर्त्तव्य है। इसलिए मैं आपसे कहूँगा कि देश के भविष्य के बारेमें, और विदेशी वस्त्रोंका पूर्ण बहिष्कार होनेपर भारतमें आयातके भविष्य के विषय में निराशा महसूस न करें। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि स्वराज्यमें भारतका भविष्य उज्ज्वलतम होगा। इस बारेमें मुझे जरा भी सन्देह नहीं कि शीघ्र ही भारतमें बहुत-से लोग इस बातपर हँसेंगे कि वे इतनी सरल-सी बातकी खूबी भी नहीं समझ पाये और बहुत पहले ही उनकी समझमें क्यों नहीं आया कि यह काम उन्हें कर लेना चाहिए। मैं चाहता हूँ कि जिस तरह बम्बई, कलकत्ता और अन्य जगहों में आपके साथी व्यापारियोंने मुझसे प्रश्न किये उसी तरह आप भी अपनी शंकाओंका समाधान मुझसे माँगें। खुलकर बातचीत करनेसे कठिनाई जितनी ज्यादा सुलझती है। उतनी किसी और तरहसे नहीं। आप सबके आज यहाँ इकट्ठे होने तथा इस सभा में हमें भाषण देनेको आमन्त्रित करनेके लिए मैं आभारी हूँ।

इसके बाद एक सामान्य परिसंवाद शुरू हो गया . . . प्रत्येक व्यापारीको उसके प्रश्नका उत्तर देते हुए महात्मा गांधी इस रायसे सहमत हुए कि ग्राहकोंको पहल करनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि मेरे कथनमें इस बातका जरा भी संकेत नहीं है कि आप अपने किये हुए अनुबन्ध तोड़ दें। मातृभूमिके हितमें स्वदेशी कार्यक्रमको सफल बनाने के लिए सारे भारतसे सहयोग करना आपका कर्त्तव्य है। मैं चाहता हूँ कि व्यापारी लोग भविष्यमें और विदेशी कपड़ा न मँगायें। उन्होंने कहा कि यदि आप जनताकी रुचि बदल सकें, जिसकी मुझे आशा है कि आप अवश्य कर सकेंगे, तो लोग निश्चय ही आपके पास आयेंगे। कपड़ा व्यापारियोंको ठोस प्रचार कार्य करनेकी जो सुविधा प्राप्त है वह अन्य किसीको प्राप्त नहीं है। गांधीजीने व्यापारियों में प्रचलित उधार खातेकी प्रथाको निन्दा करते हुए कहा कि यह प्रथा आपके उद्योग और औद्योगिक नैतिकता के लिए घातक है, और इसलिए उधार खातेको प्रथाको, विलायती कपड़े के आयातको बन्द करनेकी दिशामें कोई ऐसी बाधा न मानना चाहिए, जो पार नहीं की जा सकती। स्वराज्य मिलना तो निश्चित है और उसके साथ नये आर्थिक नियम अमलमें आयेंगे ही। बहिष्कार धीरे-धीरे होना चाहिए, इस सुझावके सम्बन्धमें महात्माजीने कहा कि इसकी पर्याप्त पूर्व-सूचना काफी पहले -- एक साल पूर्व -- दी जा चुकी थी और कोई ईमानदार व्यापारी उधार-प्रथा छोड़नेके बाद आर्थिक कठिनाइयोंके उपस्थित होनेका कोई कारण नहीं पायेगा। महात्माजीने इसका दृष्टान्त दक्षिण आफ्रिकामें श्री काछलियाके मामलेका उल्लेख करके दिया जो पहले बड़े पैमानेपर उधार-खातेपर व्यापार चलाते थे और जब उनके यूरोपीय ग्राहकोंने राज-