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भाषण : मद्रासके मजदूरों की सभा में

नैतिक कारणोंसे उनके ऊपर अपना हिसाब साफ कर देने के लिए बहुत दबाव डाला तो उन्होंने निडरतापूर्वक अपनी सब सम्पत्ति बेच डाली और अपने महाजनोंकी पाई-पाई चुका दी। इसके बाद उन्होंने उधार-प्रथाका सहारा न लेते हुए व्यापार शुरू किया और इतने समृद्ध हो गये कि उन्हीं यूरोपीय व्यापारियोंको अपना माल उन्हें फिर उधार देनेका प्रलोभन हुआ। यह एक ऐसा दृष्टान्त है जिसका आप अनुकरण करें तो अच्छा होगा। इससे अधिक साहसी व्यापारी आपको नहीं मिलेगा। निःसन्देह व्यक्तिगत कठिनाइयाँ रहेंगी ऐसा में अवश्य मानता हूँ, परन्तु स्वराज्यका अर्थ ही बलिदान करना है और एक व्यापारीसे भी अपने धन्धे में निःस्वार्थ दृष्टिकोणकी आशा की जाती है। अब चूंकि दीपावली आ रही है, आपको तड़क-भड़क वाले कपड़ोंकी ओर ध्यान नहीं देना चाहिए। तब आपको मालूम होगा कि लोगोंकी आस्था बदल चुकी है। दीपावलीका अर्थ अब अधिक आत्म-निषेध और त्याग होगा।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, १७-९-१९२१

५६. भाषण : मद्रासके मजदूरोंकी सभा में

१६ सितम्बर, १९२१

महात्मा गांधीने शामको पौने सात बजे मजदूरोंकी (जो हड़तालपर हैं ) एक बड़ी सभामें भाषण' दिया। उन्होंने कहा : मित्रो!

मैं यहाँ ठीक साढ़े छः बजे नहीं आ सका। मैं अपने व्यापारी मित्रोंसे बात करता रह गया और उन्होंने जितना मेरा अन्दाज था उससे अधिक समय तक मुझे व्यस्त रखा। पिछली बार जब मुझे आप लोगोंसे मिलनेका सौभाग्य मिला था, उस समय जो दृश्य मेरे देखने में आया था, वह मुझे अच्छी तरह याद है। मैं स्वयं एक मजदूर ही हूँ, इस नाते मेरा दिल हमेशा मद्रास के मजदूरोंके कष्ट और दुःखमें उनके साथ रहा है। मैं अब बिना किसी औपचारिकताके आज जिस विषयपर मुझे बोलना है उसपर अपना कथन शुरू कर देना चाहता हूँ।

मैं जानता हूँ कि लगभग दस हजार मजदूरोंने हड़ताल की है। मुझे यह देखकर दुःख हो रहा है कि आप परेशानियोंसे घिरे हुए हैं। मुझे इससे भी दुःख होता है कि आप दो दलोंमें बँटे हुए हैं। मुझे इस बातसे और भी ज्यादा दुःख हो रहा है कि दो दल दो दृष्टिकोणोंका प्रतिनिधित्व नहीं करते वरन् दो विभिन्न जातियोंका प्रतिनिधित्व करते हैं। मुझे मालूम हुआ है कि आदि द्रविड़ लोग, अर्थात् हमारे पंचम कहलानेवाले मित्र लोग, एक ओर हैं और अन्य लोग अर्थात् आप, दूसरी ओर हैं। मुझे यह भी मालूम हुआ है कि इन पंचम भाइयोंने कामपर जाना शुरू कर दिया है, जब कि

१. गांधीजीके भाषणका तमिल अनुवाद स्वदेशमिन्नन‌के श्री एम० एस० सुब्रह्मण्यम् अय्यरने किया।