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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ऐसे कामोंमें लगेंगे, उतना ही ज्यादा आप कमायेंगे। इसलिए जिन लोगोंका परिवार बड़ा है उनका प्रश्न स्वतः सुलझ जाता है और जब आप अपनी स्थितिकी मानमर्यादा समझ जायेंगे और जब आप यह भी समझ लेंगे कि आपके पास निर्वाह कर लेनेके लिए एक अतिरिक्त व्यवसाय है तो आप अपने मालिकोंके प्रति अथवा उनके प्रति जो मालिकोंके अधीन काम करना पसन्द करते हैं, किसी प्रकार हिंसात्मक व्यवहार न करेंगे। यदि आप मेरी सलाहपर अमल करें तो आप देखेंगे कि आप न केवल आत्मनिर्भर बन जाते हैं बल्कि आपके और मालिकोंके बीच सम्बन्ध बहुत स्वस्थ ढंगके हो जायेंगे। जब देशमें प्रत्येक मजदूर, स्त्री हो या पुरुष, स्वराज्य के और आत्मशुद्धिके बारेमें सोचेगा, तो मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि मेरी राय मानकर आप स्वराज्यका दिन नजदीक लायेंगे। यदि आप मुसलमान हैं तो आप देखेंगे कि आप लोग बाइज्जत अपनी रोजी कमा रहे हैं और इतना ही नहीं बल्कि आप अत्यन्त ईमानदारीसे इस्लाम के प्रति अपना कर्त्तव्य भी निभा रहे हैं।

मैं जानता हूँ कि आरम्भिक चरणोंमें यदि आप मेरी सलाह मान भी लें तो आपको शुरू करने के लिए थोड़ी पूँजीकी जरूरत होगी; परन्तु मुझे जरा भी सन्देह नहीं कि आपमें से प्रत्येक ईमानदार काम करनेवालेको एक हाथ करघा, एक चरखा, या एक धुनकी प्राप्त करनेमें कोई कठिनाई नहीं होगी। आप इसे मानें या न मानें, कृपया याद रखिए कि आपके द्वारा की गई कोई भी हिंसा, अथवा किसी प्रकारका उपद्रव आपके अपने ही सिरोपर दुगुनी ताकतसे लौटेगा। आपके प्रति जनताकी सारी सहानुभूति समाप्त हो जायेगी, और हर आदमी आपके प्रतिकूल होगा। इसलिए आप मिलोंके करीब न जाने, और अपने पंचम भाइयोंसे न भिड़नेका निश्चय करें, बल्कि आप चुपचाप अपने आपको काम के लिए संगठित करनेमें जुट जायें। मजदूरोंके लिए भीख माँगने का कोई कारण नहीं।

अपना कथन समाप्त करने के पूर्व एक बात और कहना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि आप सब लोग, आपकी पत्नियाँ व बच्चे इस महान राष्ट्रीय आन्दोलनमें, जो देशमें इस कोनेसे उस कोनेतक सर्वत्र फैल रहा है, अपना-अपना कर्त्तव्य निभायेंगे। हमारा देश हमसे जिस बात की अपेक्षाएँ करता है, वे हममें से हर एकके करने योग्य हैं। मैं चाहूँगा कि आप ईश्वरकी साक्षीमें शपथ लें कि अपने देशकी स्वतन्त्रताके लिए या हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच झगड़े निपटाने के लिए हिंसाका सहारा नहीं लेंगे और ईश्वरको साक्षी करके यह संकल्प करें कि कुछ मोपला देशवासियों द्वारा प्रदर्शित पागलपन के बावजूद हम हिन्दू और मुसलमान हमेशा के लिए एकताकी डोरमें बँधे रहेंगे। आप एक पवित्र शपथ लें कि आगेसे हम कभी विदेशी वस्त्र न तो पहनेंगे और न किसी भी घरेलू काम के लिए इस्तेमाल करेंगे। और हम वही कपड़ा पहनेंगे जो हाथ के कते सूतसे हथकरघेपर बुना गया हो। यदि हमारा यह दावा है कि हम धर्मयुद्धमें संलग्न हैं तो हम मदिरापान अथवा व्यभिचार करके अपने शरीरको अपवित्र नहीं कर सकते। हम जुआ नहीं खेलेंगे, हम चोरी नहीं करेंगे और न हम किसीको धोखा देंगे। मैं निर्भीकतापूर्वक कहता हूँ कि यदि मद्रासकी मिलोंके आप १० हजार मजदूर गम्भीरता के साथ यह प्रतिज्ञा करेंगे और उसीके अनुसार चलेंगे, तो आप