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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मौलाना आजाद[१] हैं। और यदि मुसलमान भाई खिलाफत और 'कुरान' के बारेमें सब कुछ जान लेने के इच्छुक हैं तो आजाद साहब के रूपमें एक विश्वसनीय पथ-प्रदर्शक और मित्र उनके बीच आया हुआ है।

निश्चय ही, यदि हमें इसी सालके अन्दर स्वराज्य प्राप्त करना है, और खिलाफत तथा पंजाब के प्रति किये गये अन्यायोंका निराकरण करवाना है तो हमें जरा भी गड़बड़ी और उलझन उत्पन्न किये बिना, अहिंसात्मक असहयोगका अनुसरण करना चाहिए। जो प्रेम व्यवस्थाहीनतामें व्यक्त होता है, वह अन्धा प्रेम है। और भारतको आज सबसे ज्यादा जरूरत जिस चीजकी है वह है विवेकपूर्ण प्रेमकी। और विवेकपूर्ण प्रेम शोर-गुलवाले प्रदर्शनों द्वारा नहीं, वरन् वास्तविक और ठोस कार्योंके रूपमें प्रकट होता है। प्रत्येक भारतीयका आत्म-सम्मान इस बातकी अपेक्षा करता है कि जबतक मौलाना मुहम्मद अली और शौकतअली हमारे खुदके प्रयत्नों द्वारा जेलसे रिहा नहीं कर दिये जाते, हमें एक मिनट भी चैनसे नहीं बैठना चाहिए। यदि उनकी रिहाई हमारे स्वराज्य पा लेने के फलस्वरूप हो, तो वह सही ढंगकी रिहाई होगी। और स्वराज्यका अर्थ यदि और कुछ नहीं तो निस्सन्देह अनुशासन तो है ही। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि यहाँके नेता लोग नागरिकोंको सार्वजनिक सभाएँ अनुशासित ढंगसे चलानेका व्यावहारिक पदार्थपाठ देंगे ताकि आदेशोंका पालन पूर्णरूपसे हो सके। हम जान चुके हैं कि कांग्रेसने, एकके बाद एक, दो अधिवेशनों में हमें स्वराज्य पानेका रास्ता दिखा दिया है। और वह रास्ता अहिंसाका है। हम तबतक सफल नहीं हो सकते जबतक हम पूरी तरह जान-बूझकर अहिंसाका आचरण नहीं करते। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि कडालोर जिले के लोगोंको प्रचार और व्यवहार द्वारा प्राथमिक पाठकी शिक्षा मिलेगी। आज हम उत्तेजनाकी हालतमें हैं, इसमें सन्देह नहीं। एक ओर तो सरकारका दमन हमारे मन में सन्ताप उत्पन्न करता है, दूसरी ओर भविष्यमें कुछ अच्छा होनेकी आशा हमारा सन्तुलन नष्ट कर देती है। यह ठीक वैसी ही स्थिति है जो हिंसाके पूर्व हुआ करती है; और असहयोगियोंके द्वारा की गई हिंसा निश्चय ही स्वराज्यके रास्ते में रुकावट डालती है।

मेरी नम्र रायमें हमारे पास, सन्तुलन और व्यवस्था उत्पन्न करनेवाली सबसे बड़ी ताकत चरखा है। जरा सोचिए, यदि आप इतनी देरतक मेरा इन्तजार करनेके बजाय ईश्वर के नामपर और राष्ट्रके निमित्त अपना यह सारा समय चरखा चलाने में लगाते, तो क्या ही बढ़िया चीज हाथ लगती ? अब उचित यही है कि भाषण सुनने और नेताओं के दर्शन करने की व्यर्थकी उत्सुकता त्याग दें। और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि यदि मुझे ऐसा आश्वासन न दिया गया होता कि यहाँ आने से स्वदेशीकी पूर्ण स्थापना हो सकेगी, तो मैं इस लम्बी यात्राका खयालकर यहाँ आनेसे इनकार कर देता। मैं देखता हूँ कि यहाँ उपस्थित स्त्रियों और पुरुषोंमें अधिकतर लोग एक न एक विदेशी वस्त्र पहने ही हुए हैं। परन्तु मैं आशा करूँगा कि आप अपने शरीरपर से तथा अपने सन्दूकों में से विदेशी वस्त्र फेंक देनेका दृढ़ निश्चय करेंगे और आप इस बातका

  1. मौलाना आजाद सोबानी|