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कलकत्ताके कड़वे अनुभव

जगहसे जरा भी आगे पीछे नहीं हट सकते। दूसरे किसी काममें पड़ ही नहीं सकते। हम भी तो स्वराज्यकी एक शान्तिमय सेना ही हैं। हमें भी अपने-अपने स्थानोंपर रहकर अपने-अपने कर्त्तव्योंका पालन करना चाहिए। दूसरे लोग क्या कर रहे हैं, इसका विचार करना हमारा काम नहीं। हम यह जानते हैं कि उस बातका प्रबन्ध उस क्षेत्रके कार्यकर्त्ता कर लेंगे। शान्तिकी सेनामें तो अशान्तिकी सेनासे भी अधिक संयमकी और अधिक व्यवस्थाकी जरूरत है, अथवा होनी चाहिए।

कलकत्ते में जिस तरह के प्रेमका कड़वा अनुभव हुआ उसी तरह अनबनका भी हुआ। मुझे मालूम होता है कि जितना पक्ष-द्वेष कलकत्तामें है उतना दूसरी जगह शायद ही हो। जो अंग्रेजी अखबार असहयोगका विरोध करते हैं उनमें मुझे सिवा जहरके और कुछ भी नहीं दिखाई देता। असहयोगियोंके लेखोंकी बे-मतलब और वाहियात नुक्ताचीनी और उनके विषयमें फैलाई बिल्कुल झूठी अफवाहोंका तो पार ही नहीं। उसमें भी कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुरके लेखों और व्याख्यानोंका तो इतना कुछ जहरीला उपयोग किया जाता है कि मेरी समझमें नहीं आता कि लोग ऐसा करनेकी हिम्मत कैसे करते होंगे। कितनी ही बार ऐसी बातोंको देखकर रावण राज्यकी तस्वीर मेरी आँखों में खिंच जाती है। जहाँ साधनकी पसन्दगी मनमाने ढंगपर की जाती हो वहाँ छल-कपटका उपयोग कौन अचम्भेकी बात है? सीताजीका हरण राक्षसके वेषमें नहीं हो सकता था। वह तो साधुके वेषमें ही हो सका। और जहाँ साधुताका इस तरह दुरुपयोग हो, वहाँ नाश होते जरा भी देर नहीं लगती। मैं यहाँ अंग्रेजी अखबारों में सत्यके नामपर झूठको फैलते हुए अपनी आँखोंसे देख रहा हूँ। असहयोगी इससे इस तरहके झूठसे बचनेका सार ग्रहण करें इसीलिए मैंने इस जहरीली हवाका यह सारा हाल लिखा है| हमारा शस्त्रतो सत्य और शान्ति है, यह बात हमें हरगिज नहीं भूलनी चाहिए।

यहाँके राष्ट्रीय महाविद्यालयमें चरखोंकी नुमाइश की गई थी। वहाँ मैंने कोई १५ किस्मके नये चरखे देखे। इसमें नई-नई तरकीबोंका तो पार ही नहीं। बहुतसे नवयुवक अपनी शक्तियोंका सुन्दर प्रयोग कर रहे हैं। कितने ही चरखे बड़े सुन्दर थे; कितने ही छोटे-छोटे भी थे। एक तो इतना छोटा था कि एक छोटी-सी पेटीमें ले जाया जा सकता था। और एक ऐसा था कि वह सन्दूकमें ले जाया जा सकता था। एक अन्यमें बाजा बजनेकी भी तरकीब लगाई गई थी। परन्तु मुझे एक भी चरखा ऐसा न दिखाई दिया जो अधिक सूत कातनेमें पुराने चरखेका मुकाबला कर सकता हो। हाँ, इन सब आविष्कारोंको देखकर मैंने यह नतीजा जरूर निकाला कि आजकल चरखा खूब लोकप्रिय हो गया है और अनेक कारीगरोंकी बुद्धिको उसने अपने सुधारके काम में लगा रखा है।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १८-९-१९२१
२१-१०