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६८. भाषण : श्रीरंगम्‌की सार्वजनिक सभामें

२० सितम्बर, १९२१

मित्रो,

इस सुन्दर मानपत्रके लिए मैं आपको हृदयसे धन्यवाद देता हूँ। मैंने इसे सुन्दर इसलिए कहा कि यह पत्रोंपर छपा हुआ है। लेकिन मैं आपको यह बता दूँ कि एक कारणसे इसकी सुन्दरतामें कमी आ गई है। वह यह है कि आपने मानपत्र अपनी मातृभाषा या राष्ट्रभाषा हिन्दुस्तानी के बजाय एक ऐसी भाषा में लिखा या छापा है जिसका हमारे राष्ट्रीय सम्पर्ककी भाषाके रूपमें कोई महत्व नहीं है। अंग्रेजी कूटनीति और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारकी भाषा है। मैं जानता हूँ कि अगर मैं आपसे अंग्रेजीका प्रयोग एक महानतम विश्व-भाषा के रूपमें ही करनेका अनुरोध करूँ तो आप मुझे गलत न समझेंगे। मैं समझता हूँ, अंग्रेजी साहित्यमें ऐसा बहुत-कुछ है, जिसका अध्ययन करके हम लाभ उठा सकते हैं। लेकिन, जैसे गलत स्थानमें रखी गई चीजोंको कचरा कहते हैं, वैसे ही जहाँ अंग्रेजीके लिए कोई स्थान नहीं हो सकता, जैसा कि यहाँ हुआ, वहाँ उसका प्रयोग गर्हित है। जब-जब मुझे अपने देशभाइयोंको अपने विचारोंसे अवगत कराने के लिए अंग्रेजीका प्रयोग करना पड़ता है, जब-जब मुझे हमारी आपसी बातचीत में अंग्रेजी सुननेको मिलती है, तब-तब इस उत्तरोत्तर बढ़ते हुए अपमानका दंश मुझे और अधिक चुभने लगता है। इसलिए, जैसा कि आप जानते हैं, आपके प्रान्तमें हिन्दी के प्रचार के लिए मारवाड़ी भाइयोंसे मैंने ५०,००० रुपया चन्दा इकट्ठा किया है। अतः मुझे पूरी आशा है कि अंग्रेजी भाषामें महारत हासिल करनेकी बेकार कोशिश के बजाय हम ईमानदारी के साथ अपनी-अपनी मातृभाषा और राष्ट्रभाषामें कुशलता हासिल करने की कोशिश करेंगे। आजके इस अनास्थाके युगमें संस्कृतकी मधुर ध्वनि सुननेका सौभाग्य तो शायद ही कभी मिल पाता है। मैं उस घास-पातकी कुटिया में रहनेवाले अन्धे कविका अपना अनुभव बताता हूँ। उसने जो श्लोक सुनाये, वे यद्यपि दुर्भाग्यसे मेरी ही प्रशंसा में लिखे गये थे, फिर भी, मैं सच बताता हूँ, उन श्लोकोंको उसके मुँह से इतने सुन्दर ढंगसे उच्चरित होते सुनकर मुझे बहुत आनन्द हुआ। अगर हमें अपने देशसे सचमुच प्रेम है तो उसमें जो कुछ अच्छा है, जो कुछ उदात्त है, उसके प्रति हमें अपने भीतर रुचि जगानी चाहिए। इसलिए जब मैं अपने देशकी स्त्रियोंको रंग-बिरंगे विदेशी वस्त्रोंसे सजकर बाहर आते देखता हूँ, तो मुझे बड़ा दुःख होता है। आपका स्वच्छ शरीर जिसके ऊपरी हिस्सेपर आपने कोई कपड़ा नहीं डाल रखा है, और आपके भालपर रचा हुआ तिलक देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है। लेकिन जब मैं आपको भी बड़े प्रेमसे विदेशी कपड़े धारण किये देखता हूँ तो अपने देश के बारेमें मेरा मन निराशासे भर उठता है। आप लोग, जो इस छोटेसे खुशहाल द्वीपमें सुख और समृद्धिका जीवन बिताते जान पड़ते हैं, यह नहीं महसूस