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भाषण : श्रीरंगम्‌की सार्वजनिक सभामें

करते कि यहाँ विदेशी कपड़े के दाखिल होनेसे भारतका कितना अहित हुआ है। इसने लाखों-करोड़ों भारतीय परिवारोंका बरबाद कर दिया है, भुखमरीकी अवस्थामें पहुँचा दिया है। सेनापर भारतका इतना धन बहाया जा रहा है, जिन लोगोंने भारतको अपना घर नहीं बनाया उनकी पेंशनके रूपमें जो धन बहकर विदेश चला जा रहा है, भारतकी तथाकथित सेवा करनेवाले अंग्रेजोंके लिए जो पैसा इंग्लैंड भेजा जाता है,[१] वह सब तो बुरा है ही; लेकिन यहाँके लोगोंको वस्त्र उद्योगसे वंचित करके उनपर थोपी गई बेकारीने इस राष्ट्रको जितना खोखला बना दिया है, उतना और किसी चीजने नहीं बनाया है। भारतकी आयके इस दूसरे बड़े साधनके समाप्त हो जानेका नतीजा यह हुआ है कि हजारों स्त्रियोंको लज्जाजनक और पतित जीवन बितानेको मजबूर होना पड़ा है। इसने हमें इस योग्य नहीं रखा है कि हम अकाल और बीमारियोंके प्रकोपको रोक सकें। और इस तरह हम आज एक ऐसी भयंकर परिस्थितिमें पड़ गये हैं, जिसका उदाहरण दुनियामें और कहीं नहीं मिल सकता। वह परिस्थिति यह है कि प्रायः भुखमरीकी स्थिति झेलनेवाले यहाँके करोड़ों लोग, जो दुनियाकी किसी भी जातिके मुकाबले कम सुसंस्कृत नहीं हैं, लगभग स्थायी तौरपर सिर्फ एक लाख अंग्रेजोंके दास बनकर रह गये हैं। आप जो सहानुभूति दर्शाते हैं, वह अगर आपके हृदयसे निकली सहानुभूति है और यदि यहाँ अलीभाइयोंकी अनुपस्थिति आपको भी उतनी ही अखर रही है जितनी मुझे, तो आप विदेशी कपड़ेसे बुनी पोशाकोंको छोड़ने में तनिक भी आगापीछा नहीं करें, और आपके बीच जो विद्वान् से विद्वान् लोग हैं, वे भी एक धर्मकार्य मानकर चरखेको अपना लेनेमें कोई संकोच नहीं करें। फिर यदि आपके हिन्दूधर्मके बाहरी आचार-व्यवहार आपकी आन्तरिक पवित्रताके ही प्रतीक हैं तो आप अस्पृश्यताके अभिशापसे मुक्ति पा लेंगे। एक सनातनी हिन्दूके नाते मैं दावेके साथ कहता हूँ कि हिन्दू-धर्म में ऐसा कुछ नहीं है जिसके आधारपर अस्पृश्यताको सही माना जा सकता हो। मुझे तो आश्चर्य होता है कि शंकर और रामानुजके इस देशमें इस चीजने कैसे इतना विषैला रूप धारण कर लिया। अगर आप ऐसा सोचते हों कि उन्होंने पंचम भाइयोंकी छायातक को अपवित्र माना होगा, तो मैं कहता हूँ, सच मानिए, आपने उनकी शिक्षाका अर्थ गलत समझा है। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि आप लोग अस्पृश्यताके भूतको अपने बीचसे मार भगायेंगे और पंचम भाइयोंको अपने सगे भाइयोंकी तरह गले लगायेंगे। हमारी आन्दोलन आत्मशुद्धिका आन्दोलन है, यह तो इसी बातसे स्पष्ट है कि मद्यपानकी बुराई हमारे बीचसे समाप्त होती जा रही है। इस अभियानमें आप जो योग देते रहे हैं, उसके लिए मैं आपको बधाई देता हूँ। आशा है, आप सभी दिशाओंमें और अधिक प्रयत्न करेंगे और स्वदेशी, मद्य-निषेध तथा अस्पृश्यताके क्षेत्रोंमें उचित योगदान करेंगे।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २२-९-१९२१
२१-११
 
  1. अंग्रेजोंकी तथाकथित सेवाओंके लिए इंग्लैंडमें दिया जानेवाला धन।